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Monday, 9 August 2010

मौसम


न्यायालय में अपराधी मौसम चुपचाप खड़ा था
लोग चिल्ला रहे थे, यही जिम्मेदार है हुजुर
बाढ, सूखे और टूटी सड़कों के लिए
इसलिए इसे तब तक लटकाया जाये सूली पर

जब तक बाकि है इसमें साजिश का कोई कतरा
इसी ने छीनी ठंडी बयार, चांदनी की शीतलता
अब तो नभ में तारे भी नज़र नहीं आते
नंगे पहाड़ , सूखती नदियाँ करती हाहाकार
भट्टी सी गरम हवा , आसमान में छेद
जानवरों का आतंक इंसानी इलाकों में
बढ़ते रेगिस्तान , सूखते गहरे कुएं
लाल, काली, पीली आंधियां और तूफान
सभी तो ये मौसम ही लाता है श्रीमान

मौसम मुस्कुराया , मौन सिर हिलाया
बोला पेड़ काटो , जमीं हिस्सों में बांटो
खूब फैलाओ प्रदूषण , चलाओ AC रोज़
मत लगाओ पेड़, सजाओ ऊँची अट्टालिकाएं
खूब फैलाओ तेल समुद्र में लालच का
चीर डालो सीना , निकाल लो खनिज सारे
मेरी माँ के लहू लुहान सीने से तुम
मैं तो तुम्हे ही लौटा रहा हूँ तुम्हारे
बोये बीज “कादर ” तुम्हारी धरोहर के

केदारनाथ"कादर"
kedarrcftkj.blogspot .com

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