दोषी हूँ तो बस इतना ही
मैंने तुम से प्रेम किया है
मचल रहा हूँ गढ़ने जीवन
टेक लगा तुमको तरुणाई
शब्दों के इस राजमहल में
कितने ही दर्पण थे समाये
लेकिन मुझे किसी दर्पण में
कहाँ मिली मन की गहराई
तुम आये तो शब्द सजे हैं
ली है कविता ने अंगड़ाई
रूपरंग के फूल खिले हैं
गूँज रही है फिर शहनाई
आज भले कह लो कुछ भी
पर कल सारा विश्व कहेगा
मेरी रुखी सी कविता में
"कादर" प्रेम की वर्षा लाई
केदार नाथ "कादर"
बहुत सुन्दर प्रेम गीत|
ReplyDeleteब्रह्मांड
Bahut bahut aabhar aapka,
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