कितना अच्छा होगा वह दिन
जिस दिन अत्याचार न होगा
केवल शुद्ध प्रेम ही होगा
कोई भी व्यभिचार न होगा
कितना अच्छा होगा वह दिन
मोल न कोई होगा तन का
मन भी ये लाचार न होगा
आँखों में पानी नहीं होगा
न अपनों का वार ही होगा
कितना अच्छा होगा वह दिन
भाषा की तकरार न होगी
रंग का कोई भार न होगा
वो दिन न आएगा कभी भी
जिस दिन त्यौहार न होगा
कितना अच्छा होगा वह दिन
मिलें गले सब गिरा दीवारें
मजहब जैसा नाम न होगा
लदा- फदा जख्मों से कोई
फिर कोई अख़बार न होगा
कितना अच्छा होगा वह दिन
खिलता होगा सबका बचपन
जीवन ऐसे खार न होगा
बाहें सदा खुली ही होंगी
खुशियों को इन्कार न होगा
कितना अच्छा होगा वह दिन
केदारनाथ"कादर"
kedarrcftkj.blogspot .com
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