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Monday, 30 August 2010

प्यार

मुझसे तुम उम्मीद रखना, मैं खुद ही बंजारा हूँ

जो बादल में छिपा हुआ है, वो नन्हा सा तारा हूँ

सिर के ऊपर छांव नहीं है, धूप दोस्ती किये हुए

प्यास ने दामन कभी न छोड़ा, मैं तो वो आवारा हूँ

जाने कैसे भरम हो गया, सबको यही बताता हूँ

मैं भी खोज रहा हूँ उसको, जिसके मैं गुण गाता हूँ

वो है सूरज अगम गगन का, मैं भटका बेचारा हूँ

मन में एक झरोखा फूटा, जिस पे मैं मन हारा हूँ

उसमें बीज उगेगा यारो जिसकी धरती है तैयार

मैंने उसको प्यार किया है,उसको मैं भी प्यारा हूँ.

केदार नाथ "कादर"

1 comment:

  1. वो है सूरज अगम गगन का, मैं भटका बेचारा हूँ
    मन में एक झरोखा फूटा, जिस पे मैं मन हारा हूँ
    वाह..बेहतरीन......
    सुन्दर कविता
    ब्रह्मांड

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