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Monday, 30 August 2010

हिसाब


कौन हिसाब मांगता है तुम्हारे गुनाह का

तुम ही कहो कितनी बार याद किया है

माना पढ़ा है तुमने सुना भी सकते हो तुम

ये भी कहो की क्या कभी पढ़े को जिया है

जपते रहो या करते रहो तुम दान पुण्य भी

अपना निबाला क्या तुमने किसी को दिया है

भूल जायोगे गिनती जब गिनोगे गलतियाँ

जाने कितनी बार "कादर" खुद को ठगा है

केदार नाथ "कादर"

http://kedarrcftkj.blogspot.com

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