कौन हिसाब मांगता है तुम्हारे गुनाह का
तुम ही कहो कितनी बार याद किया है
माना पढ़ा है तुमने सुना भी सकते हो तुम
ये भी कहो की क्या कभी पढ़े को जिया है
जपते रहो या करते रहो तुम दान पुण्य भी
अपना निबाला क्या तुमने किसी को दिया है
भूल जायोगे गिनती जब गिनोगे गलतियाँ
जाने कितनी बार "कादर" खुद को ठगा है
केदार नाथ "कादर"
http://kedarrcftkj.blogspot.com
achchhi prastuti
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