घर के बगीचे में हरी हरी घास
देखकर कुछ सोचा अनायास
तुम और मैं दोनों ही एक से
एकसा ही है अपना स्वभाव
मरते मरते फिर जी उठना
मेरा तुम्हारा एक सा भाग्य
सदैव ही निर्भर दूसरों पर
दया से बढे, नहीं तो उखाड़ फेंके
हाँ, तुम और मैं एक ही जैसे
समान है तुम्हारा मेरा अस्तित्व
उगने , बढ़ने और जीने का
ताकि रौंदा जा सके किसी दिन
इसी लिए संरक्षित हैं हम तुम.
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