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Friday, 24 June 2011

 




परेशान ये जमीं है



ये परेशान रौशनी है



बुझ रहे हैं जुगनू


आशाओं के रफ्ता -रफ्ता



ढूँढते खुशियाँ हथेलियों में


गिनकर गणित दुखी हैं


खुशियों की चाह में सब


रोते रहे हैं रफ्ता-रफ्ता



सपनों में सहारों को


तूफ़ान में किनारों को


सब चाहते हैं ज़ल्दी


वो मिलते हैं रफ्ता -रफ्ता



देखो उदासी अकेली है


आओ हम गले लगायें


दो दिल उदास मिलकर


हँसते हैं रफ्ता -रफ्ता






-Kedarnath “kadar”

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