ऐसी भी जंग होती है जहाँ तलवार नहीं होती
पीछे हट जाने से भी देखो सदा हार नहीं होती
दुश्चक्रों में घिरकर सूरज रश्मि भी रोती है
आभा कम होती है पर अन्धकार नहीं होती
दरिया मुड़ता है टकराकर सख्त पहाड़ों से
सोचे न कोई भूल से उसमें धार नहीं होती
राजनीति भी रण है एक और नहीं है कुछ
बे-बस जन की आह भी बे-आवाज़ नहीं होती
बक्त करेगा न्याय अगर सत्ताधारी सोते हैं
कोई सुबह नहीं है जिसकी शाम नहीं होती
केदारनाथ "कादर"
kedarrcftkj .blogspot .com
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