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Wednesday, 8 June 2011

कोई सुबह नहीं है जिसकी शाम नहीं होती


ऐसी भी जंग होती है जहाँ तलवार नहीं होती


पीछे हट जाने से भी देखो सदा हार नहीं होती



दुश्चक्रों में घिरकर सूरज रश्मि भी रोती है


आभा कम होती है पर अन्धकार नहीं होती



दरिया मुड़ता है टकराकर सख्त पहाड़ों से


सोचे न कोई भूल से उसमें धार नहीं होती



राजनीति भी रण है एक और नहीं है कुछ


बे-बस जन की आह भी बे-आवाज़ नहीं होती



बक्त करेगा न्याय अगर सत्ताधारी सोते हैं


कोई सुबह नहीं है जिसकी शाम नहीं होती



केदारनाथ "कादर"


kedarrcftkj .blogspot .com


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