इस दिल से तल्ख़ यादों को मिटा दे
हसरतों को तू कोई और जगह दे
इंसान की काठी कमजोर बहुत है
मिटटी में इसकी कुछ और मिला दे
हसरतों की बरातों को जगह नहीं है
शैतानो की बस्ती को शमशान बना दे
ऐ औरों के खुदा "कादर" की तमन्ना है
जो कर सके प्यार, वो इंसान बना दे
केदारनाथ "कादर"
No comments:
Post a Comment