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Monday, 6 June 2011

गर वही न हो



क्यूँ पूछते हो तुम उसके जाने के बाद की


जिन्दा रहा यूँ जैसे कोई जिंदगी न हो



कहता रहा सुनता रहा सबके ही दिलों की


सूना रहा ये दिल मेरा ज्यूँ बसा न हो



कितना है शोर कितना हैं अँधेरा चारों ओर


अब भी वहीँ खड़ा हूँ ज्यूँ सुबह हुई न हो



गुन्चे वही, गलियाँ वही, सब कुछ वही तो है


कुछ भी नहीं है लेकिन गर वही न हो



उकता गया है दिल मेरा महफ़िलों से अब


क्या बचा है "कादर" जो दिल में शमां न हो

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