हमको उनपे ऐतबार बड़ा था, खो गया है कहीं
हुजूम बड़ा साथ जो उनके था, खो गया है कहीं
उनको ऐतबार बड़ा था, अपनी किये कारनामों पे
देखो वो शख्स गुमनाम अंधेरों में खो गया है कहीं
चढ़ा अजीब नशा उनको देखो, हुकूमत का अपनी
एक विश्वास का मत था उनको, खो गया है कहीं
किस कदर स्वार्थ में डूबे न कुछ भी याद रहा
वो तो इंसान का हक था जो खो गया है कहीं
हाँ, अभी बक्त लगेगा यारो, मगर वो उगेगा जरुर
वो इन्साफ का सूरज था, जो खो गया है कहीं
चूम लूँगा "कादर" उस अँधेरे के कदम होंठों से
बाद जिसके है मेरा सवेरा, जो खो गया है कहीं
Kedarnath “kadar”
No comments:
Post a Comment