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Friday, 24 June 2011




तुम उषा सी प्रति प्रभात में







तुम उषा सी प्रति प्रभात में


नव वस्त्र पहन प्राची प्रांगन में


करती पदार्पण मम जीवन में


स्मित नयनों में लेकर आशा


धारण कर विश्वास की आशा


नित मुझसे सुनने को प्रसंशा


लेकिन बिन देखे तुमको मैं


कह देता हूँ नहीं पसंद हो


तुम फिर लौट चली जाती हो


कल फिर सज आने को नूतन


तुम उषा सी प्रति प्रभात में



केदारनाथ "कादर"






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