तुम उषा सी प्रति प्रभात में
तुम उषा सी प्रति प्रभात में
नव वस्त्र पहन प्राची प्रांगन में
करती पदार्पण मम जीवन में
स्मित नयनों में लेकर आशा
धारण कर विश्वास की आशा
नित मुझसे सुनने को प्रसंशा
लेकिन बिन देखे तुमको मैं
कह देता हूँ नहीं पसंद हो
तुम फिर लौट चली जाती हो
कल फिर सज आने को नूतन
तुम उषा सी प्रति प्रभात में
केदारनाथ "कादर"
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