तेरी प्यास न ऐसे बुझेगी, तेरी प्यास अमोल
क्या ढूढें तट ,ताल ,तलैय्या ,सूखे अधर अबोल
तुझमें हैं रत्नाकर सारे
तुझमें सोलह सूर्य पधारे
मर्म समझ ले अरे! बाबरे!
मन अंतर्पट तू खोल
तेरी प्यास न ऐसे बुझेगी, तेरी प्यास अमोल
तू सुलगे गीली लकड़ी सा
है धुआँ- धुआँ चहुँ ओर
लाल दीखे न अपना तुझको
बटोही, मन की गठरी खोल
तेरी प्यास न ऐसे बुझेगी, तेरी प्यास अमोल
जल में मीन किलोल करें
जन्में प्यासी मर जायें
प्यास रखो सागर के जैसी
क्या तेरे आँसूं का मोल
तेरी प्यास न ऐसे बुझेगी, तेरी प्यास अमोल
No comments:
Post a Comment