भूख बिकती है, खरीदी जाती है
गुर मिला है जनम से इन्सान को
बहुत पैने हो गए हैं नाखून अब
काटने को तैयार हैं ईमान को
खून, ईमान, इज्ज़त, सब बिकता है
भूख लाती है ऐसे मोड़ पे इन्सान को
भूख सिखलाती है जीने का हुनर
भूख भगवान बनाती है इन्सान को
केदारनाथ"कादर"
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