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Thursday, 2 December 2010

फ़र्ज़

जब तलक फिर से लहू बहाया न जायेगा
मुल्क मेरा बरबादियों से बचाया न जायेगा

किससे से करें शिकवा शिकायत सब हैं चुप
बिन शोर नाखुदाओं को जगाया न जायेगा

बिगड़े हुए हैं मेरे मुल्क के हालत दोस्तों
हमसे क्या इक इन्कलाब लाया न जायेगा

खुदगर्ज़ रहबरों की है बारात मेरे मुल्क में
फ़र्ज़ का सलीका इनको सिखाया न जायेगा

जब तक सुकून से नहीं मुल्क का हर शख्स
सोने का फ़र्ज़ "कादर" निभाया न जायेगा

केदार नाथ "कादर"


1 comment:

  1. desh ke prati ek tadaf ..
    janmanas ko jagane aur jhakjhorne ka kam kar rahi hai apki rachna .

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