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Sunday, 12 December 2010

मैं समझ नहीं पाता अंतर

मैं समझ नहीं पाता अंतर
बिना गुरु पारंगत हुआ एकलव्य
भेद डाले अपने जीवन लक्ष्य
नरेन्द्र बन गया विवेकानंद
रामकृष्ण के आशीर्वाद से
कितने प्रयत्न करते हम
घूमते तीर्थों में ढूंढते गुरु
चरण शरण में भी रहकर
ओढ़कर रामनामी चादर
फिर भी रह जाते कोरे के कोरे

मैं समझ नहीं पाता अंतर
सात दिवस में परीक्षित ने
उद्धार कर लिया था अपना
सुनकर गीता वचन केवल
वर्षों से पूजारत हैं हम
आज भी याद करते हैं
नल औए नील को लोग
जिनके डाले पत्थर तैरते थे
विशाल प्रचंड समुद्र पर
हमारे चढाये तो फूल भी
बहकर डूब डूब जाते हैं

मैं समझ नहीं पाता अंतर
तुलसी को दीखते थे
हर ओर राम और सीता
सूर फोड़कर आँख भी
देख लेते हैं उस प्रभु को
नाम देव पशु में भी
देख पाता है उस को
हम मानव को भी
मानव की नजर से
क्यूँ नहीं देख पाते

मैं समझ नहीं पाता हूँ अंतर ......

केदारनाथ"कादर"

2 comments:

  1. hmmmmm koi nahi samajh pata ye antar sir vicharniye rachna

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  2. Thanks , Aalokita ji,

    Apna apna kaam , baki jane ram.

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