मैं समझ नहीं पाता अंतर
मैं समझ नहीं पाता अंतर
बिना गुरु पारंगत हुआ एकलव्य
भेद डाले अपने जीवन लक्ष्य
नरेन्द्र बन गया विवेकानंद
रामकृष्ण के आशीर्वाद से
कितने प्रयत्न करते हम
घूमते तीर्थों में ढूंढते गुरु
चरण शरण में भी रहकर
ओढ़कर रामनामी चादर
फिर भी रह जाते कोरे के कोरे
मैं समझ नहीं पाता अंतर
सात दिवस में परीक्षित ने
उद्धार कर लिया था अपना
सुनकर गीता वचन केवल
वर्षों से पूजारत हैं हम
आज भी याद करते हैं
नल औए नील को लोग
जिनके डाले पत्थर तैरते थे
विशाल प्रचंड समुद्र पर
हमारे चढाये तो फूल भी
बहकर डूब डूब जाते हैं
मैं समझ नहीं पाता अंतर
तुलसी को दीखते थे
हर ओर राम और सीता
सूर फोड़कर आँख भी
देख लेते हैं उस प्रभु को
नाम देव पशु में भी
देख पाता है उस को
हम मानव को भी
मानव की नजर से
क्यूँ नहीं देख पाते
मैं समझ नहीं पाता हूँ अंतर ......
केदारनाथ"कादर"
hmmmmm koi nahi samajh pata ye antar sir vicharniye rachna
ReplyDeleteThanks , Aalokita ji,
ReplyDeleteApna apna kaam , baki jane ram.