पीड़ा
बहुत जानता है तू
बहुत कुछ सीखा है
पंडित है कर्मयोगी है
ज्ञेय है तुझे सब
पढ़ा है ग्रंथों को
जानता है अनेक रहस्य
बता मुझे पीड़ा क्या है ?
कैसी होती है पीड़ा ?
प्रेम की, प्रताड़ना की
प्रताड़ित मन के प्रति
प्रेम से उपजी पीड़ा
जानता भी है तू ?
पीड़ा क्या होती है ?
यदि नहीं तो छोड़
इस पांडित्य ढोंग को
जो तुम्हें एक साधारण
मनुष्य भी नहीं छोड़ता
केदारनाथ"कादर"
यह तो बहुत सुन्दर कविता है.
ReplyDeleteपाखी की दुनिया में भी आपका स्वागत है.
सही है.. हर बातें ग्रंथों में नहीं होती हैं.. कुछ बातें तो सिर्फ महसूस करके ही सीखी जाती हैं..
ReplyDeleteअच्छी कविता...
achi kawita
ReplyDeleteAap sabhi ka bahut bahut aabhar ji.
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