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Thursday, 2 December 2010

हम जीतेंगे सच की जंग ये आशा कम विश्वास बहुत है


कड़वी यादें भ्रष्टाचार तुम्हारी, उर में आग लगा जाती हैं
विरह्ताप भी मधुर मिलन के सोये मेघ जगा जाती है
तेरे कारण नयन भीगने का हमको अभ्यास बहुत है
हम जीतेंगे सच की जंग ये आशा कम विश्वास बहुत है

धन्य- धन्य तेरी लघुता को, जिसने तुम्हें महान बनाया
धन्य- धन्य है स्नेह कृपणता, जिसने तुम्हे उदार बनाया
जन -जन की अंधभक्ति को इतना ही मंद प्रकाश बहुत है
हम जीतेंगे सच की जंग ये आशा कम विश्वास बहुत है

अगणित शलभों के दल के दल एक ज्योति पर जल मरते
एक बूँद की अभिलाषा को कोटि कोटि चातक तप करते
शशि के पास सुधा थोड़ी है पर चकोर की प्यास बहुत है
हम जीतेंगे सच की जंग ये आशा कम विश्वास बहुत है

नयन खोल देखो नादानी अपनी जो तुमने की उन्माद में
वरना पड़ेगा तुमको खुद सिर धुनना अपने बोये अवसाद में
नित्य देखते अख़बारों में काले धंधों का गुणगान बहुत है
हम जीतेंगे सच की जंग ये आशा कम विश्वास बहुत है

ओ जीवन के थके पखेरू सत पथ पर हिम्मत मत हारो
पंखों में भविष्य बंदी है, तुम मत अतीत की ओर निहारो
क्या चिंता कुछ सुख छूटेंगे, सच पाने का एहसास बहुत है
हम जीतेंगे सच की जंग ये आशा कम विश्वास बहुत है


केदार नाथ "कादर"
http://kedarrcftkj.blogspot.com (posted)

4 comments:

  1. क्या चिंता कुछ सुख छूटेंगे, सच पाने का एहसास बहुत है
    हम जीतेंगे सच की जंग ये आशा कम विश्वास बहुत है
    सारगर्भित गीत बहुत बहुत बधाई

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  2. 'हम जीतेंगे सच की जंग ये आशा कम विश्वास बहुत है' पंक्ति कुछ असमंजस में लगी.
    बाकी आपकी गीतनुमा कविता का बहाव जबरदस्त है, शब्द चयन भी प्रभावशाली है.
    लिखते रहिये ...

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  3. Sunil kumar sahab, Alokita ji, Majal sahab,

    Aapka bahut bahut shukriya ji.

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