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Tuesday, 28 December 2010

मौत

किस से बचना चाहते हो

क्या तुम्हारी हस्ती है ?

मौत का साथ पक्का

जिंदगी तो छलती है

चल चलाचल दूर तक

इस से न मंजिल मिलती है

ख़तम होगा न ये सफ़र

मौत बस रास्ता बदलती है

केदारनाथ"कादर"

बड़ा इंसान बनता है बता ए खाक के पुतले


बड़ा इंसान बनता है बता ए खाक के पुतले ?

किया क्या खाक तूने, बस जीवन गंवाया है ?

कभी रोया है क्या उसकी इबादत में तू कह ?

शरीके -दर्द- दिल हो क्या किसी का दिल बंटाया है ?

कभी दिल तेरा भर आया है मुफलिस की गरीबी पर ?

कभी हिस्से का खाना बांटकर क्या तूने खाया है ?

मरने को आमादा है हरदम मेरे नाम पर तू क्यों ?

मुसीबत में क्या किसी आफतजदा के काम आया है ?

मेरी राह में छोड़ा है तूने, क्या बता तू कह ?

किसी बेकस की खातिर जान पर सदमा उठाया है ?

मुझे पाना बहुत आसान है सब में देख तू मुझको

इबादत का सलीका आदम तुझे फिर ये बताया है ?

केदारनाथ"कादर"

भूख

भूख बिकती है, खरीदी जाती है

गुर मिला है जनम से इन्सान को

बहुत पैने हो गए हैं नाखून अब

काटने को तैयार हैं ईमान को

खून, ईमान, इज्ज़त, सब बिकता है

भूख लाती है ऐसे मोड़ पे इन्सान को

भूख सिखलाती है जीने का हुनर

भूख भगवान बनाती है इन्सान को

केदारनाथ"कादर"

Sunday, 12 December 2010

पीड़ा



बहुत जानता है तू
बहुत कुछ सीखा है
पंडित है कर्मयोगी है
ज्ञेय है तुझे सब
पढ़ा है ग्रंथों को
जानता है अनेक रहस्य
बता मुझे पीड़ा क्या है ?
कैसी होती है पीड़ा ?
प्रेम की, प्रताड़ना की
प्रताड़ित मन के प्रति
प्रेम से उपजी पीड़ा
जानता भी है तू ?
पीड़ा क्या होती है ?
यदि नहीं तो छोड़
इस पांडित्य ढोंग को
जो तुम्हें एक साधारण
मनुष्य भी नहीं छोड़ता

केदारनाथ"कादर"


मैं समझ नहीं पाता अंतर

मैं समझ नहीं पाता अंतर
बिना गुरु पारंगत हुआ एकलव्य
भेद डाले अपने जीवन लक्ष्य
नरेन्द्र बन गया विवेकानंद
रामकृष्ण के आशीर्वाद से
कितने प्रयत्न करते हम
घूमते तीर्थों में ढूंढते गुरु
चरण शरण में भी रहकर
ओढ़कर रामनामी चादर
फिर भी रह जाते कोरे के कोरे

मैं समझ नहीं पाता अंतर
सात दिवस में परीक्षित ने
उद्धार कर लिया था अपना
सुनकर गीता वचन केवल
वर्षों से पूजारत हैं हम
आज भी याद करते हैं
नल औए नील को लोग
जिनके डाले पत्थर तैरते थे
विशाल प्रचंड समुद्र पर
हमारे चढाये तो फूल भी
बहकर डूब डूब जाते हैं

मैं समझ नहीं पाता अंतर
तुलसी को दीखते थे
हर ओर राम और सीता
सूर फोड़कर आँख भी
देख लेते हैं उस प्रभु को
नाम देव पशु में भी
देख पाता है उस को
हम मानव को भी
मानव की नजर से
क्यूँ नहीं देख पाते

मैं समझ नहीं पाता हूँ अंतर ......

केदारनाथ"कादर"

Thursday, 2 December 2010

हम जीतेंगे सच की जंग ये आशा कम विश्वास बहुत है


कड़वी यादें भ्रष्टाचार तुम्हारी, उर में आग लगा जाती हैं
विरह्ताप भी मधुर मिलन के सोये मेघ जगा जाती है
तेरे कारण नयन भीगने का हमको अभ्यास बहुत है
हम जीतेंगे सच की जंग ये आशा कम विश्वास बहुत है

धन्य- धन्य तेरी लघुता को, जिसने तुम्हें महान बनाया
धन्य- धन्य है स्नेह कृपणता, जिसने तुम्हे उदार बनाया
जन -जन की अंधभक्ति को इतना ही मंद प्रकाश बहुत है
हम जीतेंगे सच की जंग ये आशा कम विश्वास बहुत है

अगणित शलभों के दल के दल एक ज्योति पर जल मरते
एक बूँद की अभिलाषा को कोटि कोटि चातक तप करते
शशि के पास सुधा थोड़ी है पर चकोर की प्यास बहुत है
हम जीतेंगे सच की जंग ये आशा कम विश्वास बहुत है

नयन खोल देखो नादानी अपनी जो तुमने की उन्माद में
वरना पड़ेगा तुमको खुद सिर धुनना अपने बोये अवसाद में
नित्य देखते अख़बारों में काले धंधों का गुणगान बहुत है
हम जीतेंगे सच की जंग ये आशा कम विश्वास बहुत है

ओ जीवन के थके पखेरू सत पथ पर हिम्मत मत हारो
पंखों में भविष्य बंदी है, तुम मत अतीत की ओर निहारो
क्या चिंता कुछ सुख छूटेंगे, सच पाने का एहसास बहुत है
हम जीतेंगे सच की जंग ये आशा कम विश्वास बहुत है


केदार नाथ "कादर"
http://kedarrcftkj.blogspot.com (posted)

फ़र्ज़

जब तलक फिर से लहू बहाया न जायेगा
मुल्क मेरा बरबादियों से बचाया न जायेगा

किससे से करें शिकवा शिकायत सब हैं चुप
बिन शोर नाखुदाओं को जगाया न जायेगा

बिगड़े हुए हैं मेरे मुल्क के हालत दोस्तों
हमसे क्या इक इन्कलाब लाया न जायेगा

खुदगर्ज़ रहबरों की है बारात मेरे मुल्क में
फ़र्ज़ का सलीका इनको सिखाया न जायेगा

जब तक सुकून से नहीं मुल्क का हर शख्स
सोने का फ़र्ज़ "कादर" निभाया न जायेगा

केदार नाथ "कादर"


Wednesday, 1 December 2010

धर्म

धर्म धर्म तू क्या चिल्लाये

पग पग खुदको ठगता जाये

पत्थर के तेरे मंदिर मस्जिद

पत्थर के भगवान बनाये

धर्म न जाना सच्चा तूने

आग लगाये, खून बहाए

राम रहीम मिलकर रोते है

ईमान, आहें ,आंसू बहाए

देखो इंसा की नादानी

गीता और कुरान जलाये

धर्म एक है बस इतना ही

इंसा- इंसा को गले लगाये


केदारनाथ"कादर"

बाबा

बाबा निराश नहीं है अभी

क्या हुआ आश्रम टूटा

छते गिर गयी हैं न

सामान टूट गया है, बस

पर फिर भी बहुत है अभी

मेरे प्रति बची श्रद्धा उनकी

चलो करते हैं फिर शुरू

कल से अपना व्यापार

केदारनाथ "कादर"

तेरी प्यास न ऐसे बुझेगी, तेरी प्यास अमोल

तेरी प्यास न ऐसे बुझेगी, तेरी प्यास अमोल

क्या ढूढें तट ,ताल ,तलैय्या ,सूखे अधर अबोल

तुझमें हैं रत्नाकर सारे

तुझमें सोलह सूर्य पधारे

मर्म समझ ले अरे! बाबरे!

मन अंतर्पट तू खोल

तेरी प्यास न ऐसे बुझेगी, तेरी प्यास अमोल

तू सुलगे गीली लकड़ी सा

है धुआँ- धुआँ चहुँ ओर

लाल दीखे न अपना तुझको

बटोही, मन की गठरी खोल

तेरी प्यास न ऐसे बुझेगी, तेरी प्यास अमोल

जल में मीन किलोल करें

जन्में प्यासी मर जायें

प्यास रखो सागर के जैसी

क्या तेरे आँसूं का मोल

तेरी प्यास न ऐसे बुझेगी, तेरी प्यास अमोल

केदारनाथ "कादर"