आ बैठा हूँ तेरे तट पर
ओ मेरी मन बसनी रजनी
देख रही हो मेरे हृदय में
कलकल करती प्रेम नदी
शब्द पुष्प कुछ चुने हैं मैंने
सब तुमको करता अर्पण
मेरे मुख पर हंसी है तेरी
बिम्ब तेरा मन के दर्पण
लेकिन मन मरू मेरा विकट
जिसमे सिर्फ भटकना मुझको
आज भरे गले से तुमको
सत्य यही करता अर्पण
केदार नाथ "कादर"
bahut sundar !!!
ReplyDeleteअथाह...
!!!
Rajinder Meena ji,
ReplyDeleteBahut bahut aabhar aapka
लेकिन मन मरू मेरा विकट
ReplyDeleteजिसमे सिर्फ भटकना मुझको
kedar ji virah aur prem me nirlipt darshan ki gahari anubhuti karaane ke liye baut si badhai
शब्द पुष्प कुछ चुने हैं मैंने
ReplyDeleteसब तुमको करता अर्पण
मेरे मुख पर हंसी है तेरी
बिम्ब तेरा मन के दर्पण
Nice lines..
ashu2aug.blogspot.com
bahut sundar likha hai aapne.........ati sundar
ReplyDeleteAna ji bahut bahut shukriya aapka, rachna pasand karne ke liye.
ReplyDeletesundar prastuti
ReplyDeletebadhai kabule
Alok ji,
ReplyDeleteBahut bahu aabahr aapka.