वह चिड़ियों को दाना डालकर पालती थी
खुश रहती थी फुदकती चिड़ियों की तरह
उसे मालूम न था, क्या है चिड़िया होना?
बहुत बड़ा गुनाह, जीवन में चिड़िया होना
इसलिए वह पीड़ित थी, चिड़िया होने से
कौन समझ सकता है, उसकी अपनी पीड़ा
क्या कवि? जो कभी चिड़िया नहीं बना
वह तो रटता रहा है , चिड़िया पूज्य है
चिड़िया फडफड़ाती है कटे हुए पंखों से
जो बंधे हैं रिश्तों से और अधिकारों से
कोई नहीं समझता चिड़िया की तड़पन
चिड़िया भूख से पिंजड़ा नहीं बदलती
उसे अखरती है, सामाजिक बेरुखी
इसलिए चिड़िया चीखती है अब जोर से
यही गुनाह काफी है उसे मारने के लिए
केदार नाथ "कादर"
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