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Wednesday, 15 September 2010

देह का महाभारत

आदर्श, मानवता, प्रेम
केवल हैं मरे हुए शब्द
जो कुचले जा रहे दिन रात
धर्म के भारी ट्रक के नीचे
धर्म मानो देह कोई रूपसी की
दिन रात खोदी जाती, शिशनों से
योनि के ताज़े रक्त से रंगे वस्त्र
इस कलयुग के महापुरुषों के
वेश्या के कोठों से कालेज
नपुंसक शिशनधारियों की भीड़
आते जाते ताकती रहती है
चिकनी खंबे सी गोरी जांघें
आँखों में अनेक ख्वाव पाले
उलटी सीधे घिसने के
चिपक कर रौंदने के लिए
अब धर्म शास्त्र जला दो
पढने दो इन्हें कोकशास्त्र
ताकि ख़तम हो सके इनकी
देह का ये भीषण महाभारत

केदार नाथ "कादर"
http://kedarrcftkj.blogspot.com

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