वातायन खोलूं कैसे
प्रेम रश्मियों
तुम्हारे लिए
जबकि गठबंधन
विरह से हो चुका है
मेरे भाग्य की लिपि में
प्रेमांकुर का
प्रस्फुटन नहीं है
गल चुके हैं बीज
मेरे खारी नीर नयन से
मन के वातायन मेरे
अंधकारमय सारे
द्वार खड़े तम प्रहरी
तुम प्रतिवेदन न दो, प्रिये
हार चुका हूँ मैं बाज़ी
प्रेम मिलन ही नहीं है
प्रेम प्रतीक्षा भी है, प्यारी
निश्चय ही तुम देवी रहोगी
मेरे इस मन मंदिर की
और रहूँगा जीवन पर्यंत
"कादर" मैं मूक पुजारी
केदार नाथ "कादर"
http://kedarrcftkj.blogspot.com
bahut sundar likha hai aapne.........ati sundar
ReplyDeleteAna ji,
ReplyDeleteBahut bahut dhanyawaad aapka.