जिंदगी तेरे बगैर होगी हमसे बसर नहीं
मेरी जाँ मंजिल अकेले होगी ये सर नहीं
जमाना ज़ालिम बड़ा है, ये है खबर हमें
हम भी है पक्के आशिक उसे खबर नहीं
रखते हैं शौक़ आग से खेलने का हम
ये इश्क का मैदान है खाला का घर नहीं
क्यूँ मारने तुले हो इंसानियत को तुम
ये प्यार जिंदगी है क्या तुम्हे खबर नहीं
लेखा वहां होगा इश्के अज़िमें गुनाह का
जैसा यहाँ हाल है "कादर" वैसा उधर नहीं
केदारनाथ"कादर"
kedarrcftkj.blogspot .com
No comments:
Post a Comment