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Sunday, 25 July 2010

महंगाई

महंगाई के विरोध में भारत बंद का ऐलान किया गया , भारत बंद के बाद महंगाई पर राजनीति और गरमा गयी है ! जहाँ एक तरफ एन.डी.ए इस मुद्दे पर सरकार को संसद में घेरने कि तैयारी कर रही है वहीँ दूसरी तरफ कांग्रेस ये कह रही है कि महंगाई विश्वव्यापी है अभी कम नहीं हो सकती, फिर भी अगर भाजपा के पास कोइ नीति है तो वह स्वशासित राज्यों में महंगाई कम करे फिर हम उन्ही की नीतिओं पर चलेंगे कुछ इस प्रकार कि शब्दों कि राजनीति दोनों तरफ से हो रही है हर पार्टी हर नेता अपनी कुर्सी को बचाने की जुगत में लगे है और इस राजनीति के बीच में फंसकर परेशान हो रही इन सब की कर्ता-धर्ता बेचारी जनता ! महंगाई कहीं कम नहीं है फिर चाहें वो “सत्तापक्ष शासित” राज्य हो या “विपक्ष शासित” लेकिन कोई भी अपनी गलती मानने को तैयार नहीं है ! एन.डी.ए. द्वारा प्रायोजित “भारत बंद” कि बात करें तो एन.डी.ए. चाहे इस बंद के सफल होने पर अपनी पीठ ठोके लेकिन कटु सच्चाई यही है कि इस बंद से अर्थव्यवस्था को करीब १३००० करोड़ रुपये क्षती हुई है उससे महंगाई बढ़ ही सकती है घट नहीं सकती ! इन सबके बीच हमारे प्रधानमंत्री जी बादलों कि राह देख रहे है उनका कहना है कि अगर बारिश हुई तो पैदावार अच्छी होगी तब महंगाई कम हो जाएगी ! आम आदमी भी झेल रहा है इस महंगाई को सिर्फ इस उम्मीद पर कि आज न सही कल कम हो जाएगी ‘क्या करे’ खाना तो नहीं छोड़ सकते ! उच्च वर्गीय परिवारों को इस महंगाई से ज्यादा कुछ अंतर नहीं पड़ता और मध्यम वर्गीय परिवार किसी न किसी तरह झेल ही रहे हैं लेकीन भारत के उन ३०% निम्न वर्गीय लोगों का क्या होगा जिनकी एक दिन कि आय मात्र २० रुपये है वो कैसे झेल रहे होंगे इस महंगाई को सोच के ही दिमाग फट रहा है ! समस्याएँ इतनी है और नेताओं को अपनी “कुर्सी कि राजनीति” से ही फुर्सत नहीं है कि इन समस्याओं कि ओर देखें और अगर राजनीति करनी ही है तो कुर्सी से ऊपर उठकर राजनीति करें जिससे जनता का भला हो ! कृषि मंत्री जी कहते हैं देश में अन्न कि कमी नहीं है लेकिन फिर भी लोग भूख से मरते हैं , देश के ३० प्रतिशत लोग आज़ादी इन्ते वर्षों बाद भी वहीँ के वहीँ हैं !
अन्न भण्डारण के उपाय करने वजय कृषि मंत्री जी कहते हैं मीडिया पीछे पड़ा है अन्न की बर्वादी को बाधा चढ़ा कर दिखा रहा है. हुजुर देश की जनता क्रिकेट की गेंद नहीं है जिसे मारते जाओ ! फलों सब्जियों के भाव आसमान को छू रहे हैं ! एलोपैथिक दवाओं के माफिया ने देश को गुलाम बना दिया है! महंगाई के कारण चारों और हाहाकार है ! आप भी सोचें , क्या करें ?



भाई रे भाई बड़ी महंगाई
मार गई सबको महंगाई
सभी कीर्तन सा करते हैं
सब ही रटते हैं महंगाई

गैस चढ़ गई , तेल जल गया
बिजली दर कौंधी आँखों में
मेरी रसोई भी कांप रही है
देख के तेरे रंग महंगाई

बीबी खटती मैं भी खटता
लेकिन खर्च नहीं ये पटता
निसदिन थाली खाली होती
अरे तेरे ही कारण महंगाई

अब माँ-बाबा चुप रहते हैं
कहते डरते लाओ दवाई
बीबी नहीं मांगती अब कुछ
खुशियाँ सब छीनी महंगाई

अब बच्चे भी समझ गए हैं
तेरे सदमे मेरे पढ़कर चहेरे
मरने से भी डर लगता है
कफ़न पे चढ़ी हुई महंगाई

त्योहारों के रंग फीके हैं
सावन आंसू से भीगे हैं
रिश्तों में भी रंग नहीं है
अरे तेरे ही कारण महंगाई

सुरसा जैसी बढती जाती
जन जन की आशाएं खाती
मीठे से मधुमेह जैसा है
अरे तेरे ही कारण महंगाई

रहम करो अरे सत्ता वालो
काबू में रखो महंगाई
बनकर मौत सा पहरा देती
भाई रे भाई बड़ी महंगाई

केदारनाथ"कादर"
kedarrcftkj.blogspot .com

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