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Sunday, 25 July 2010

देह से क्या नेह है, तू तो प्राणी विदेह है

देह से क्या नेह है, तू तो प्राणी विदेह है
अवधि भ्रमण की जगत में, जब तलक ये देह है

आत्मा के स्वर हैं तेरे, देह एक सितार है
गुणगान कर रचेयता का, जीवन तभी साकार है

सब में बसा है प्राण बन जो , बस वाही भरतार है
आँखों से मन की देख लो, सब में छिपा करतार है

संगीत के सुर में बसा, कण कण में जो है रम रहा
चैतन्य सागर वह प्रभु "कादर" का प्राणाधार है


केदारनाथ "कादर"
kedarrcftkj.blogspot.com

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