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Sunday 25 July 2010

देह से क्या नेह है, तू तो प्राणी विदेह है

देह से क्या नेह है, तू तो प्राणी विदेह है
अवधि भ्रमण की जगत में, जब तलक ये देह है

आत्मा के स्वर हैं तेरे, देह एक सितार है
गुणगान कर रचेयता का, जीवन तभी साकार है

सब में बसा है प्राण बन जो , बस वाही भरतार है
आँखों से मन की देख लो, सब में छिपा करतार है

संगीत के सुर में बसा, कण कण में जो है रम रहा
चैतन्य सागर वह प्रभु "कादर" का प्राणाधार है


केदारनाथ "कादर"
kedarrcftkj.blogspot.com

महंगाई

महंगाई के विरोध में भारत बंद का ऐलान किया गया , भारत बंद के बाद महंगाई पर राजनीति और गरमा गयी है ! जहाँ एक तरफ एन.डी.ए इस मुद्दे पर सरकार को संसद में घेरने कि तैयारी कर रही है वहीँ दूसरी तरफ कांग्रेस ये कह रही है कि महंगाई विश्वव्यापी है अभी कम नहीं हो सकती, फिर भी अगर भाजपा के पास कोइ नीति है तो वह स्वशासित राज्यों में महंगाई कम करे फिर हम उन्ही की नीतिओं पर चलेंगे कुछ इस प्रकार कि शब्दों कि राजनीति दोनों तरफ से हो रही है हर पार्टी हर नेता अपनी कुर्सी को बचाने की जुगत में लगे है और इस राजनीति के बीच में फंसकर परेशान हो रही इन सब की कर्ता-धर्ता बेचारी जनता ! महंगाई कहीं कम नहीं है फिर चाहें वो “सत्तापक्ष शासित” राज्य हो या “विपक्ष शासित” लेकिन कोई भी अपनी गलती मानने को तैयार नहीं है ! एन.डी.ए. द्वारा प्रायोजित “भारत बंद” कि बात करें तो एन.डी.ए. चाहे इस बंद के सफल होने पर अपनी पीठ ठोके लेकिन कटु सच्चाई यही है कि इस बंद से अर्थव्यवस्था को करीब १३००० करोड़ रुपये क्षती हुई है उससे महंगाई बढ़ ही सकती है घट नहीं सकती ! इन सबके बीच हमारे प्रधानमंत्री जी बादलों कि राह देख रहे है उनका कहना है कि अगर बारिश हुई तो पैदावार अच्छी होगी तब महंगाई कम हो जाएगी ! आम आदमी भी झेल रहा है इस महंगाई को सिर्फ इस उम्मीद पर कि आज न सही कल कम हो जाएगी ‘क्या करे’ खाना तो नहीं छोड़ सकते ! उच्च वर्गीय परिवारों को इस महंगाई से ज्यादा कुछ अंतर नहीं पड़ता और मध्यम वर्गीय परिवार किसी न किसी तरह झेल ही रहे हैं लेकीन भारत के उन ३०% निम्न वर्गीय लोगों का क्या होगा जिनकी एक दिन कि आय मात्र २० रुपये है वो कैसे झेल रहे होंगे इस महंगाई को सोच के ही दिमाग फट रहा है ! समस्याएँ इतनी है और नेताओं को अपनी “कुर्सी कि राजनीति” से ही फुर्सत नहीं है कि इन समस्याओं कि ओर देखें और अगर राजनीति करनी ही है तो कुर्सी से ऊपर उठकर राजनीति करें जिससे जनता का भला हो ! कृषि मंत्री जी कहते हैं देश में अन्न कि कमी नहीं है लेकिन फिर भी लोग भूख से मरते हैं , देश के ३० प्रतिशत लोग आज़ादी इन्ते वर्षों बाद भी वहीँ के वहीँ हैं !
अन्न भण्डारण के उपाय करने वजय कृषि मंत्री जी कहते हैं मीडिया पीछे पड़ा है अन्न की बर्वादी को बाधा चढ़ा कर दिखा रहा है. हुजुर देश की जनता क्रिकेट की गेंद नहीं है जिसे मारते जाओ ! फलों सब्जियों के भाव आसमान को छू रहे हैं ! एलोपैथिक दवाओं के माफिया ने देश को गुलाम बना दिया है! महंगाई के कारण चारों और हाहाकार है ! आप भी सोचें , क्या करें ?



भाई रे भाई बड़ी महंगाई
मार गई सबको महंगाई
सभी कीर्तन सा करते हैं
सब ही रटते हैं महंगाई

गैस चढ़ गई , तेल जल गया
बिजली दर कौंधी आँखों में
मेरी रसोई भी कांप रही है
देख के तेरे रंग महंगाई

बीबी खटती मैं भी खटता
लेकिन खर्च नहीं ये पटता
निसदिन थाली खाली होती
अरे तेरे ही कारण महंगाई

अब माँ-बाबा चुप रहते हैं
कहते डरते लाओ दवाई
बीबी नहीं मांगती अब कुछ
खुशियाँ सब छीनी महंगाई

अब बच्चे भी समझ गए हैं
तेरे सदमे मेरे पढ़कर चहेरे
मरने से भी डर लगता है
कफ़न पे चढ़ी हुई महंगाई

त्योहारों के रंग फीके हैं
सावन आंसू से भीगे हैं
रिश्तों में भी रंग नहीं है
अरे तेरे ही कारण महंगाई

सुरसा जैसी बढती जाती
जन जन की आशाएं खाती
मीठे से मधुमेह जैसा है
अरे तेरे ही कारण महंगाई

रहम करो अरे सत्ता वालो
काबू में रखो महंगाई
बनकर मौत सा पहरा देती
भाई रे भाई बड़ी महंगाई

केदारनाथ"कादर"
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तू बता है कहाँ, है कहाँ तू मेरे खुदा

तू बता है कहाँ, है कहाँ तू मेरे खुदा
ये धरती सुलगती, तेरी रहमत के बिना
तू ही मालिक विधाता, तेरा ही सारा जहां
भूख से मरते क्यूँ तेरे बन्दे, ये बता
तू बता है कहाँ, है कहाँ तू मेरे खुदा

तूने ही बख्शी थी,स्वर्ग सी हमको जमीं
गोलियां हैं खून है, रोज़ ही मातम यहाँ
चंद सिक्कों की खातिर, बिका उनका इमां
अब वहां पर नमाजों की जमाते हैं कहाँ
तू बता है कहाँ, है कहाँ तू मेरे खुदा

तेरा कहर ये नाजिल किस तरह हुआ
है कहीं सैलाब, नहीं कहीं कतरा यहाँ
मर गए प्यासे कहीं , कहीं दरिया बना
कर रहा है क्या तू मौला, कुछ तो बता
तू बता है कहाँ, है कहाँ तू मेरे खुदा

उजड़े घर यहाँ लाखों, तेरे तूफान से
बन्दे शैतान हो गए तेरे, ईमान से
नन्ही कलियों पर हवस हाबी हुई
बन गया बन्दा तेरा, कैसे हैवान सा
तू बता है कहाँ, है कहाँ तू मेरे खुदा

मंदिर नहीं, मस्जिद नहीं, गिरजा नहीं
अब तेरे गुरुद्वारे भी यहाँ बाकि नहीं
कुदरती काबा भीतेरा अब बिकने लगा
हर जगह पे पसरा जुर्म का साया यहाँ
तू बता है कहाँ, है कहाँ तू मेरे खुदा

जितने भी तेरे रूप हैं सब में तू आ
राम, हजरत,जीसस या नानक बनके आ
जो भी बनना है बनके , जल्दी से आ
तेरे बन्दों का अब तो अकीदा उठ चला
तू बता है कहाँ, है कहाँ तू मेरे खुदा

तस्वीर धुधली हो रही रहमत की तेरी
अब लगा न फरियाद तू सुनने में देरी
अब ये जीवन लगने लगा है इक सजा
जल्दी आ जल्दी आ, बस यही इल्तजा
तू बता है कहाँ, है कहाँ तू मेरे खुदा

केदारनाथ "कादर"
kedarrcftkj.blogspot.com

तू बता है कहाँ, है कहाँ तू मेरे खुदा

तू बता है कहाँ, है कहाँ तू मेरे खुदा
ये धरती सुलगती, तेरी रहमत के बिना
तू ही मालिक विधाता, तेरा ही सारा जहां
भूख से मरते क्यूँ तेरे बन्दे, ये बता
तू बता है कहाँ, है कहाँ तू मेरे खुदा

तूने ही बख्शी थी,स्वर्ग सी हमको जमीं
गोलियां हैं खून है, रोज़ ही मातम यहाँ
चंद सिक्कों की खातिर, बिका उनका इमां
अब वहां पर नमाजों की जमाते हैं कहाँ
तू बता है कहाँ, है कहाँ तू मेरे खुदा

तेरा कहर ये नाजिल किस तरह हुआ
है कहीं सैलाब, नहीं कहीं कतरा यहाँ
मर गए प्यासे कहीं , कहीं दरिया बना
कर रहा है क्या तू मौला, कुछ तो बता
तू बता है कहाँ, है कहाँ तू मेरे खुदा

उजड़े घर यहाँ लाखों, तेरे तूफान से
बन्दे शैतान हो गए तेरे, ईमान से
नन्ही कलियों पर हवस हाबी हुई
बन गया बन्दा तेरा, कैसे हैवान सा
तू बता है कहाँ, है कहाँ तू मेरे खुदा

मंदिर नहीं, मस्जिद नहीं, गिरजा नहीं
अब तेरे गुरुद्वारे भी यहाँ बाकि नहीं
कुदरती काबा भीतेरा अब बिकने लगा
हर जगह पे पसरा जुर्म का साया यहाँ
तू बता है कहाँ, है कहाँ तू मेरे खुदा

जितने भी तेरे रूप हैं सब में तू आ
राम, हजरत,जीसस या नानक बनके आ
जो भी बनना है बनके , जल्दी से आ
तेरे बन्दों का अब तो अकीदा उठ चला
तू बता है कहाँ, है कहाँ तू मेरे खुदा

तस्वीर धुधली हो रही रहमत की तेरी
अब लगा न फरियाद तू सुनने में देरी
अब ये जीवन लगने लगा है इक सजा
जल्दी आ जल्दी आ, बस यही इल्तजा
तू बता है कहाँ, है कहाँ तू मेरे खुदा

केदारनाथ "कादर"
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Tuesday 20 July 2010

पाकिस्तान वार्ता- कश्मीर

पाकिस्तान से वार्ता फेल हो गई
बातों का सिलसिला है , हो गई
क्या समझी है कभी तुम्हारी टीस ?
क्या मानी है कभी तुम्हारी बात ?
हर बार मारकर तुम्हें बताते है औकात
की तुम पिस्सुओं को मारेंगे ऐसे ही
तुम डरो अमेरिका से और खूब पिटो
अपने ही टुकड़ों पर पलते कुत्तों से
अमेरिका का काम है मदारी जैसा
तुम साले नाचो बंदरिया बनकर
तुम चाहते हो खुजली तुम्हे हो
और आकर खुजाये कोई और
ये नासूर तुम्हारे बदन पर है
इस बदन को तुम्हे ही दागना पड़ेगा
तुम्हारी टीस सिर्फ तुम जानते हो
बन जाओ जर्राह वर्ना लाइलाज हो जायेगा
"कादर" ये कश्मीर हमारे बच्चों के लिए

केदारनाथ"कादर"
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खाली हंडिया में भूख पक रही है

खाली हंडिया में भूख पक रही है
बच्चों की आँखें चमक रही हैं
सरकारी वादे आ रहे हैं रोज़
अख़बारों में, रेडिओ पर, ख़बरों में
मां बाप डरते हैं बच्चों से, चूल्हा जलाते
कब तक वो खाली हंडिया हिलाएं
भूखे बच्चों को बहकाकर सुलाएं
भूख का भस्मासुर -
रोज ताल ठोककर चढ़ जाता है
हमारी इज्ज़त के ऊपर-
और हम खड़े रहते हैं मजबूर
बच्चों के सामने निर्वस्त्र से

कोई है जो ले सके-
हमारे हिस्से की भूख
हमारे हिस्से की निर्लज्जता
हमारे हिस्से का नंगापन
उनको चाहिए बस एक अंगूठा
हमारा उनके चुनाव चिन्ह पर

केदारनाथ"कादर"
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कुछ समय तो खुशियाँ मिलेंगी



बड़े जतन से बचाकर रखता था-
छोटे भाइयों से अपनी किताबें
वो उन्हें फाड़ न दे, विद्या है उनमें
मार भी देता था कभी कभी उन्हें
रात भर दीये की रौशनी में
आँखें फोड़ते हुए पढता था
बापू का गाढ़ा खून जलाकर
उम्मीदों की फसल बोई थी
मैं बाबू बनूँगा पढ़ लिखकर
बीमार होते हुए भी खटता था
सोते में भी मेरा नाम रटता था
मैं पास हुआ तो लगा-
नौकरी की अंतहीन लाइन में
अँधेरी गुफा सी सीधी सुरंग
जहाँ उजाले की न आती किरण
चोर दरवाजे बनाने की कुब्बत
"रिश्वत " नही जुटा सका मैं
इसलिए डिग्री का जहाज बनाकर
उडाने को छोटे भाई को दे आया हूँ
शायद यही उसका उपयोग है
दो घडी नादान खुश तो होगा
कुछ समय तो खुशियाँ मिलेंगी

केदारनाथ"कादर"
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इंडो-पाक वार्ता- आम इन्सान की सोच

बड़ा अच्छा किया घर बुलाकर
मारे जो शब्दों के जूते तुम्हे
जागो सालो अब तो जागो
टोपी धारी किन्नरों इस देश के
पंचशील के सिद्धांत को धत्ता है
आज की दुनिया में ताकत बिना
कुर्सी उसी को मिलती है यहाँ
जो रखता है ताकत बैठने की
तुम कश्मीर उन्हें सौपने का
मसौदा बनाकर क्यूँ नहीं ले गए
कश्मीर उनकी बुआ का घर है
जाने तुम कब फूफा बनोगे
खूब खाओ पत्थर मजनुओं
अपने ही देश में रंडीखोरों के
पहने रहो प्रजातंत्र का चोला
चाहे दिखे नंगा भारत का तन
न्योता दो उन्हें, आओ हमारे देश
हम तुम्हें कारगिल देंगे मुंह दिखाई
सालो हिम्मत से कहो उनसे
हमें दहेज़ में पाकिस्तान चाहिए
हम तैयार हैं सेहरा बाँधकर
खून से भरने कराची की मांग
अपना प्यारा तिरंगा लहराकर
"कादर" तुम कभी ऐलान तो करो

केदारनाथ"कादर"
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Thursday 15 July 2010

आज के हालात का तफसरा

दोस्तों क्या क्या बताएं क्या तमाशा देखिये
शब्दों के फौजी ये नेता, नित तमाशा देखिये

रोज़ उठते हैं दुआओं के लिए ये हाथ दो
काम हासिल है नहीं, इनकी हताशा देखिये

जल रहा है देश और सकें ये अपनी रोटियाँ
है कहीं फ़ाके और कहीं रंगीन शामें देखिये

कौन करता है फिकर, देश की और कौम की
"कादर" चर्चा यही हर जगह सुबह शाम देखिये

केदारनाथ"कादर"
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ख़ुदकुशी- जीवन

हाँ मैं ख़ुदकुशी नहीं करूँगा
मैं मुश्किलों से नहीं डरूंगा
मैं भागूँगा , गिरूंगा, फिस्लूँगा
पाने जिंदगी की हर साँस
मौत को अंतिम मित्र मान
सदैव रखता उसका ध्यान
हर रोज़ देखता होकर खुश
प्रतिपल प्रतिदिन आते पास
जीता हूँ हर पल जीवन का
पूरा जैसा भी मिला मुझे
मैं जनता हूँ छोड़ना ही है
इसलिए भोगता हूँ आनंदित
बिना किसी झूठे प्रपंच के
सत्यान्वेषण और सहने की
प्रक्रिया करती जीवन निर्माण
मैं इसलिए सदैव तत्पर हूँ
लड़ने के लिए समुद्र से
तुफानो से कठिनाइयों से
यही तो है जीवन पड़ाव
हम मानते सब हैं लेकिन
जानना जाने कब सीखेंगे
खाने की किताब से सुख नहीं
मिलता है पकाकर उसे खाने से
इसलिए जियो जिंदगी खुलकर
बाहें खोलकर आलिंगन करने
"कादर" अंतिम सत्य मौत का

केदारनाथ"कादर"
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मैं

मुझे दिखता नहीं सौन्दर्य, नहीं दिखती है मादकता
जहाँ पे फैली है अराजकता, मैं उसी जगह बैठा हूँ

पेट पे ताल दे रहे कितने, जो हैं सब भूख के मारे
वीभत्स दृश्य और तिरोहित रंग सब देखा करता हूँ

आत्मसचेत जीवन-ज्ञाता, मैं हरदम रोता रहता हूँ
शब्दचित्र मैं विभत्स ही नयनों से देखा करता हूँ

नहीं कोई कल्पना होती मैं बस कलपता रहता हूँ
हंसी है चस्पा चहेरे पे, जीवन जहर पीया करता हूँ

बिम्ब देखता हूँ कितने, टूटे हुए जीवन दर्पण में
आक्रोशित होता है मन खुदपर, क्यूँ जिया करता हूँ


केदारनाथ"कादर"
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दर्द

लोग कहते हैं दर्द है, ये तो चला जायेगा
दिल में है लहू सा ये, न जाने कहाँ जायेगा

किन हदों की हो बात करते, ये हदें हैं क्या
दर्द बेहद है सीने में , ये हदों में न बंध पायेगा

हम तो शरमाते थे आने से भी तेरी गली में
अब तेरे आने से ही दिल मेरा ये टूट जायेगा

तुझे छिपा के रखा था मैंने , दिल के तालों में
तेरे खतों से न ये दिल बेचारा बहल पायेगा

अश्कों की झड़ी है, सेहरे सी आँखों में सजी
खाक होंगे मुस्कुराते हम, वो न समझ पायेगा

इश्क हमने किया, खताबार हैं हम ही "कादर"
क़त्ल हम हुए हैं, इल्जाम भी हम पे आएगा

केदारनाथ"कादर"
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अब तुम्हे खुद मानकर हम पूजा करेंगे

सोचते हैं जब जाओगे तब क्या करेंगे
अब तलक था योग आँखों का मन का
कैसे कर पाएंगे तुमको जुदा हम खुदसे
अब तुम्हे खुद मानकर हम पूजा करेंगे

आंसू झरेंगे बहुत फूल बन याद में तेरी
हम मानकर सौगात तेरी इन्हें खुश रहेंगे
चाहे कितने भी दूर अब तुम हो गए हो
अब तुम्हे खुद मानकर हम पूजा करेंगे

तुम न रोना कभी भी याद में हमारी
तुम कहो दूर हैं, ये तो हम सह न सकेंगे
दूर हो कहाँ मेरे इस जीवन सफ़र में
अब तुम्हे खुद मानकर हम पूजा करेंगे

तुम अब तुम न रहे, न हम, हम ही रहे
एक धरती एक अम्बर, एक ही हम रहेंगे
तुम जीवन आराध्य प्रेम के मेरे लिए हो
अब तुम्हे खुद मानकर हम पूजा करेंगे


केदारनाथ"कादर"
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तेरे बगैर

जिंदगी तेरे बगैर होगी हमसे बसर नहीं
मेरी जाँ मंजिल अकेले होगी ये सर नहीं

जमाना ज़ालिम बड़ा है, ये है खबर हमें
हम भी है पक्के आशिक उसे खबर नहीं

रखते हैं शौक़ आग से खेलने का हम
ये इश्क का मैदान है खाला का घर नहीं

क्यूँ मारने तुले हो इंसानियत को तुम
ये प्यार जिंदगी है क्या तुम्हे खबर नहीं

लेखा वहां होगा इश्के अज़िमें गुनाह का
जैसा यहाँ हाल है "कादर" वैसा उधर नहीं

केदारनाथ"कादर"
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HONOUR KILLING

दोस्तों ,

आज कल हर अख़बार और न्यूज चैनल पर खबर सुनने को मिल जाती है कि हरियाणा के फलां गाँव में प्रेमी जोड़ो को मार दिया या फलां रेलवे स्टेशन पर प्रेमी जोड़े ने आत्म हत्या कर ली. फलां गावं के लोगों कि शादी पंचायत ने तुडवा दी अब वो भाई बहन हैं उनके बच्चे भी थे, अब ये प्रश्न उठने स्वाभाविक हैं कि मनुष्य की खातिर व्यवस्थाएं हैं या व्यवस्थाओं पर बलि होने के लिए मनुष्य है. मेरा मानना है की बंधन होने चाहिए समाज को बांधे रखने के लिए , लेकिन समाज को भी ये मंथन करना चाहिए की वे बंधन कितने जरुरी हैं, क्या जीवन से ज्यादा जरुरी हैं ये बंधन, ये जाति, ये गोत्र . मुझे इंतजार रहेगा आपके विचारों का.



इज्ज़त की खातिर मौतों का नया चला व्यापार
मन चाहे जीवन साथी को चुनने का अधिकार
इसी देश की रीत रही है स्वयंवर जीवन सार
रोको इन मानव- बलियों को प्रेमी करें पुकार

मानव की जाती मानव है तज दो वर्ण विचार
शादी के बंधन अनचाहे, उतरें कभी न पार
मातपिता का फ़र्ज़ निभाओ करो न कोई रार
सबसे बड़ा पुण्य प्रेम है ये ही जीवन का सार

प्रेम पे न कोई बांध बनाओ, पुनः करो विचार
प्रेम बीज गर पनप रहे हैं सहज करो स्वीकार
बंधन समाज के ढीले कर दो प्रेमी करें पुकार
खुश न हों जब अपने फ़ूल ही बगिया है बेकार

उनके सपने, उनकी राहें, उनका है अपना प्यार
जाति गोत्र सब हमने गढे, सोचो करो विचार
समयानुसार सत्य भी बदले कहते ग्रन्थ पुकार
प्रेमियों की राह बुहारो "कादर" ये हैं प्रेमावतार


केदारनाथ"कादर"
kedarrcftkj.blogspot .com

Monday 12 July 2010

तुम

मेरे दिल में क्या है जो तुम देख पाते
खुदा की कसम तुम न यूँ रूठ पाते

तुम जो गए हो तो दिल है ये सूना
क्यूँ इतनी थी जल्दी कुछ तो बताते

है बेचैन दिल ये , नहीं चैन इसको
करें क्या हम कुछ समझ ही न पाते

तनहाइयों के रंग बड़े ही अज़ब हैं
जुदाई सहें कैसे हमें तू ही बता दे

अब छा गया है मेरे हर सू अँधेरा
खुशियों को तुम बिन कैसे सदा दें

तुम ही हो साज इस जीवन के मेरे
"कादर" कैसे सजें सुर तू ही बता दे

केदारनाथ"कादर"
kedarrcfdelhi.blogspot .com

Sunday 11 July 2010

ये तेरा लालच, ये मेरा लालच
जीवन कितने ही लील गया

न जागे लालच की नींद से
न कर्त्तव्य का ही भान रहा

तुम हो अफसर बैठे AC में
न पदगरिमा का ध्यान रहा

अब कर्मों की खेती में लाशें
देख के मन क्यूँ हैरान रहा

क्या पाया करके ये प्रपंच
क्यूँ अब हाथों को मल रहा

तेरे अपने भी अब हैं फंसे
क्यूँ सोच में मन जल रहा

कितना बड़ा अपराध सोच ले
पैसों की खातिर करता रहा

क्या हासिल हुआ इस चोरी से
"कादर" मन तो तेरा शमशान रहा

केदारनाथ "कादर"
kedarrcftkj.blogspot.com
बंजर बढ़ता, बाढ़ है आती, ऐसा भैया जान
आँख पे पट्टी बांधे बैठा, पढ़ा लिखा इन्सान

जंगल काटे, वन घटाए, पैसा खूब कमाए
प्रकृति के आँचल को नोचे, कैसा है हैवान

पर्वत नंगे, नदियाँ प्यासी, सूखा है मैदान
अरे जाग जा भूल मान ले, न बन नादान

बांध बनाकर , तुम गले न नदियों के घोंटो
रुके जल से बढती गर्मी, जानो ये इन्सान

पूरी धरती अपना घर है, बनो न बेईमान
बृक्ष उगें वन बचें , हो नदियों का सम्मान

अभी समय है भूल सुधारो बनो नहीं नादान
"कादर" आँखें बंद रखीं तो होगा बस शमशान


केदारनाथ "कादर"
kedarrcftkj.blogspot.com

तू बता है कहाँ, है कहाँ तू मेरे खुदा

तू बता है कहाँ, है कहाँ तू मेरे खुदा
ये धरती सुलगती, तेरी रहमत के बिना
तू ही मालिक विधाता, तेरा ही सारा जहां
भूख से मरते क्यूँ तेरे बन्दे, ये बता
तू बता है कहाँ, है कहाँ तू मेरे खुदा

तूने ही बख्शी थी,स्वर्ग सी हमको जमीं
गोलियां हैं खून है, रोज़ ही मातम यहाँ
चंद सिक्कों की खातिर, बिका उनका इमां
अब वहां पर नमाजों की जमाते हैं कहाँ
तू बता है कहाँ, है कहाँ तू मेरे खुदा

तेरा कहर ये नाजिल किस तरह हुआ
है कहीं सैलाब, नहीं कहीं कतरा यहाँ
मर गए प्यासे कहीं , कहीं दरिया बना
कर रहा है क्या तू मौला, कुछ तो बता
तू बता है कहाँ, है कहाँ तू मेरे खुदा

उजड़े घर यहाँ लाखों, तेरे तूफान से
बन्दे शैतान हो गए तेरे, ईमान से
नन्ही कलियों पर हवस हाबी हुई
बन गया बन्दा तेरा, कैसे हैवान सा
तू बता है कहाँ, है कहाँ तू मेरे खुदा

मंदिर नहीं, मस्जिद नहीं, गिरजा नहीं
अब तेरे गुरुद्वारे भी यहाँ बाकि नहीं
कुदरती काबा भीतेरा अब बिकने लगा
हर जगह पे पसरा जुर्म का साया यहाँ
तू बता है कहाँ, है कहाँ तू मेरे खुदा

जितने भी तेरे रूप हैं सब में तू आ
राम, हजरत,जीसस या नानक बनके आ
जो भी बनना है बनके , जल्दी से आ
तेरे बन्दों का अब तो अकीदा उठ चला
तू बता है कहाँ, है कहाँ तू मेरे खुदा

तस्वीर धुधली हो रही रहमत की तेरी
अब लगा न फरियाद तू सुनने में देरी
अब ये जीवन लगने लगा है इक सजा
जल्दी आ जल्दी आ, बस यही इल्तजा
तू बता है कहाँ, है कहाँ तू मेरे खुदा


केदारनाथ "कादर"
kedarrcftkj.blogspot.com

उससे पंजा लड़ाते हैं

आओ खेलें खेल नया हम , उससे पंजा लड़ाते हैं
दर्द को दर्द न समझे हम, दर्द में भी मुस्काते हैं

खून जलाकर रस्ता देखा, हमने उसके आने का,
मेरे इस पागलपन पर लोग, मेरी हंसी उड़ाते हैं

मेरी मुर्दा ख्वाहिशों से और मेरे टूटे सपनों से
बिना इल्म-ए-इश्क किये, दुनिया वाले घबराते हैं

रात अँधेरी आँचल में, दिन का सन्देशा लाई देखो
हिम्मत वाले ही यहाँ पत्थर को मोम बनाते हैं

होश होश जो रटते रहते , सदा होश खो जाते हैं
मनमौजी हैं गर्दिश मैं भी हम तो मौज मानते हैं.

माना खुदा है सबका मालिक हम भी कम तो नहीं
सौ-सौ टुकड़ों में बंटकर हम सौ-सौ रूप दिखाते हैं

माना तूने ही है रचा हमें, तुझसे ही पंजा लड़ाते हैं
तेरे दर्द को दर्द न समझे , दर्द में भी मुस्काते हैं


केदारनाथ "कादर"
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Wednesday 7 July 2010

दुःख

मेरे दुःख अपने तुम्ही हो , तुम से ही जीवन सजाया
सुख के पंछी उड़ ही जाते, तुमने ही बंधन निभाया

इस व्यथा से था परिचित, कुछ भी स्थिर नहीं था
इस लिए मेरे प्रिये दुःख , दिल के पालने में बिठाया

तुम रहे जब पास में, मैंने सार्थक मधुमास पाया
तुमने अनुभव कराया, क्या सुखों की होती छाया

मीत हो मेरे ह्रदय के , न तुम्हे मैं त्यज सकूँगा
तेज तेरे ही कारण , मेरे मुख मंडल पे छाया

माना पीड़ा है मगर , तुम से सुख का प्रसव पाया
"कादर" दुःख जिवंत पथ है, करता पगपग उजारा.

केदारनाथ "कादर"
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