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Tuesday 20 July 2010

कुछ समय तो खुशियाँ मिलेंगी



बड़े जतन से बचाकर रखता था-
छोटे भाइयों से अपनी किताबें
वो उन्हें फाड़ न दे, विद्या है उनमें
मार भी देता था कभी कभी उन्हें
रात भर दीये की रौशनी में
आँखें फोड़ते हुए पढता था
बापू का गाढ़ा खून जलाकर
उम्मीदों की फसल बोई थी
मैं बाबू बनूँगा पढ़ लिखकर
बीमार होते हुए भी खटता था
सोते में भी मेरा नाम रटता था
मैं पास हुआ तो लगा-
नौकरी की अंतहीन लाइन में
अँधेरी गुफा सी सीधी सुरंग
जहाँ उजाले की न आती किरण
चोर दरवाजे बनाने की कुब्बत
"रिश्वत " नही जुटा सका मैं
इसलिए डिग्री का जहाज बनाकर
उडाने को छोटे भाई को दे आया हूँ
शायद यही उसका उपयोग है
दो घडी नादान खुश तो होगा
कुछ समय तो खुशियाँ मिलेंगी

केदारनाथ"कादर"
kedarrcftkj.blogspot .com

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