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Friday, 5 August 2011

अबोले-शब्द

बहुत से शब्द अबोले हैं
जब से छुआ है तुमने अँधेरे में
बहुत सी बातें हैं कहनी मुझे
पर सारे मेरे शब्द मदहोश हैं
तुम जो बांधे हो मुझे, प्रिये !
अपने कोमल बाहुपाश में

कुछ जो बोलूँ तो बोलूँ कैसे?
लव ये खोलूँ तो खोलूँ कैसे ?
तेरी छुअन से हुआ झंकृत
मेरा रोम-रोम तनमन का
तेरी यादों में यदि मद इतना
होगा क्या जब तुम होगी , प्रिये!
सच में साकार मेरी बाँहों में


Kedar nath “kadar”

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