आजाद
आजादी इक ख्याल है
तुम देखो न जागकर
क्यूँ पालते हो स्वप्न
तुम स्वतंत्र भारत के
सपनों के बीज भी
तुमने विदेशी ही चुने
भूल बैठे तुम पुरुषार्थ
रखते रहे बस शर्तें
हुए कहाँ तुम आजाद
आज भी गुलाम सोच
आज भी गुलाम तुम
तोड़ दो ये बंदिशे
और फिर जियो तुम
आजाद होकर निसदिन
केदारनाथ "कादर"
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