अब हो गया है मुझको
मेरे अकेलेपन से ही प्यार
जहाँ मैं हूँ
और तू पिया
अकेलापन मेरा
ले आया तुम्हें
नहीं अब बीच
कोई दूसरा तुम्हारी सोच है
तुम्हारा साथ भी
कोई जाने नहीं
है हाथों में हाथ भी फैली जुल्फें
मेरे सीने पे
देखती खुद को
आँखे तेरी मेरी अधखुली आँखों में
बह रहा है समुद्र
प्रेम का
तैरते हैं जिसमें
हम तुम
मेरे अकेलेपन में
मैंने पाया
स्वर्णिम सुगन्धित
सान्निध्य तेरा
केदारनाथ "कादर"
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