आँखों में
पक गए बाल मेरे, बोल भी अस्थिर सारे
ये नज़र खामोश रही तो न होगी कोई चर्चा
केदारनाथ "कादर"
ने क्या ढूंढती हो तुम वीरान आँखों में
छेड़ो न तुम छिपे हैं कई तूफान आँखों में
क्या खोजती हो दफ़न की राख में अंगारे
बुझ गए चिराग अँधेरे हैं बाकी आँखों में
अब बचे नहीं निशाँ मुस्कुराहटों के आँखों में
बहुत से सवाल जगे हैं इन सोई आँखों में
No comments:
Post a Comment