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Friday, 19 August 2011

आँखों में

ने क्या ढूंढती हो तुम वीरान आँखों में
छेड़ो न तुम छिपे हैं कई तूफान आँखों में

क्या खोजती हो दफ़न की राख में अंगारे
बुझ गए चिराग अँधेरे हैं बाकी आँखों में

पक गए बाल मेरे, बोल भी अस्थिर सारे
अब बचे नहीं निशाँ मुस्कुराहटों के आँखों में

ये नज़र खामोश रही तो न होगी कोई चर्चा
बहुत से सवाल जगे हैं इन सोई आँखों में

केदारनाथ "कादर"


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