मुझे तुझ से प्यार है मेरे बच्चे
तू बेबाक यूँ बोला न कर
गिद्धों के सामने अपने ये
नाजुक पंख खोला न कर
आज़ादी से लेकर आज तक
मांगते रहे-पर मालूम न था
बिना दिल्ली चढ़े हक हासिल नहीं
ये बात तू बोला न कर
न कहाकर झंडे समेटो
न कह की धरने पे बैठो
आग कर के इकठ्ठा तुम
ज्वालमुखी से संसद पे फूटो
अगर तुझमें नहीं दम मौन रह ले
ये सारे ही सितम चुप चाप सह ले
तू अपनी बातें दायरे में किया कर
तुझको मार सकते हैं नक्सली बताकर
न तोड़ो बेड़ियाँ तुम कानून की
गिद्धों की न छीनो बोटियाँ
गिद्धों पर बनकर बिजलियाँ टूटो
ये अपने बाप पर एहसान कर
केदारनाथ "कादर"
kedarrcftkj.blogspot.com
बहुत खूब्।
ReplyDeleteक्रान्ति !!! , कब ????
ReplyDeleteक्रान्ति के पूर्व
होती है छटपटाहट
भीतर
कही कोने में
नक्कारखाने में
तूती की तरह
जैसे
रात के अँधेरे में
करते हो शोर
ढेर सारे झींगुर
मगर ...
क्रान्ति नहीं होती
लोग जागते है
या
जब अलसभोर हो
या
जब सिंह दहाड़ते है
निकट ,
निपट,
निर्भीक !
(आदरणीय प्रिय श्री केदार नाथ "कादर" जी को समर्पित करता हु ये शब्द )
bahut khoob kedar ji!
ReplyDeletesubhkamana sweekaar karien!