रोको ये आरी रोको
रोको कुल्हाड़ी रोको
न मारो पांव कुल्हाड़ी पर
तुम काट के अपने पेड़
रोको ये आरी रोको , रोको कुल्हाड़ी रोको
तुम बस दस पेड़ अपना लो
इन्हें अपना मित्र बना लो
तुम काटोगे कभी न पेड़
तुम सब ये सौगंध उठा लो
रोको ये आरी रोको , रोको कुल्हाड़ी रोको
ये पेड़ चुनर धरती की
माँ का न आँचल फाड़ो
ये घर कितने विहगों का
तुम न ये नीड़ उजाड़ो
रोको ये आरी रोको , रोको कुल्हाड़ी रोको
ये रेगिस्तान को रोक रहे हैं
ये मिल सूखा रोक रहे हैं
ये मेरी तुम्हारी सांसों में
अमृत रस घोल रहे हैं
रोको ये आरी रोको , रोको कुल्हाड़ी रोको
ये शिवशंकर हैं धरती के
co2 विष को पी रहे हैं
मानव अंत की विभीषिका
ये भरसक रोक रहे हैं
रोको ये आरी रोको , रोको कुल्हाड़ी रोको
तुम भी ये नियम अपना लो
इन्हें अपना मित्र बना लो
फल फ़ूल मिलेंगे तुमको
इन्हें जीवन पर्यन्त सम्हालो
रोको ये आरी रोको , रोको कुल्हाड़ी रोको
ये विनय है मेरी सबसे
न अपनी देह यूँ काटो
अंधी विकास की दौड़ में
भूमि न बृक्ष लोथों से पाटो
रोको ये आरी रोको , रोको कुल्हाड़ी रोको
फिर न सावन आएगा
फिर न पपीहा गायेगा
आओ "कादर" इन्हें पूजें हम
इन्हें अपना इष्ट बना लो
रोको ये आरी रोको , रोको कुल्हाड़ी रोको
केदारनाथ "कादर"
kedarrcftkj.blogspot.com
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