जब तलक फिर से लहू बहाया न जायेगा
मुल्क बरबादियों से बचाया न जायेगा
किससे करें शिकायत, शिकवा, सब हैं चुप
बिन शोर नाखुदाओं को जगाया न जायेगा
माना हैं बिगड़े मुल्क के मेरे हालात दोस्तों
क्या एक नया इन्कलाब लाया न जायेगा
खुदगर्ज़ रहबरों की है बारात मुल्क में
क्या फ़र्ज़ का सलीका सिखाया न जायेगा
जब तक सुकून से नहीं मुल्क का हर शख्स
सोने का फ़र्ज़ "कादर" निभाया न जायेगा
केदारनाथ" कादर"
kedarrcfdelhi.blogspot .com
(published)
ab lahu bahane ki bat theek nahi lagt. lahu to roj bahta hai, sadion se bah raha hai.
ReplyDeleteउत्तमं काव्यम् ।।
ReplyDeleteधन्यवादार्ह:
माना हैं बिगड़े मुल्क के मेरे हालात दोस्तों
ReplyDeleteक्या एक नया इन्कलाब लाया न जायेगा
खुदगर्ज़ रहबरों की है बारात मुल्क में
क्या फ़र्ज़ का सलीका सिखाया न जायेगा
लाजवाब बधाई
शेर उम्दा गजल उम्दा, कहने की-सुनने की अदा उम्दा
ReplyDeleteअशआर उम्दा सुखन उम्दा, अंदाज सधा , सादा, उम्दा ||
kedar ji aaj sare kaan me tel dale soye hain jo is tarah jagnewale nahi, unhe jgaane ke liye inklab kafi nahi..........
ReplyDeleteaapki rachna purnarup se deshprem se bhari hai..badhai