केदार नाथ शब्द मसीहा
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Monday, 25 April 2011
मंशा
बड़ा अजीब प्राणी हूँ मैं
उल्टा ही सोचता हूँ सदा
अक्सर लोग अक्खड़ कहते हैं
कड़वा ही जो बोलता हूँ मैं
अब मैं भी सीख गया हूँ
जब प्रसंसा के पांव भारी हों
समझो मंशा पैदा होने वाली है
होठों पे फैलने वाली मुस्कान
हथेली फैलने का पहला चरण है
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