Total Pageviews

18,244

Monday, 25 April 2011

मंशा




बड़ा अजीब प्राणी हूँ मैं


उल्टा ही सोचता हूँ सदा


अक्सर लोग अक्खड़ कहते हैं


कड़वा ही जो बोलता हूँ मैं


अब मैं भी सीख गया हूँ


जब प्रसंसा के पांव भारी हों


समझो मंशा पैदा होने वाली है


होठों पे फैलने वाली मुस्कान


हथेली फैलने का पहला चरण है

No comments:

Post a Comment