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Monday, 25 April 2011

सबक





एक नए साथी को सबसे मिलवाना था


उसे कार्यालय से परिचित करवाना था


किताबी ज्ञान परीक्षा में तो उत्तीर्ण था


वास्तविक दर्शन मुझे ही समझाना था


मुझे कार्यालायागत-नैतिकता बताना था


मैं समझाता, पर वह पहले ही जानता था


बड़े आसान शब्दों में उसने समझाया था


रिश्वत मर्द की तरह मांगी जाती है यहाँ


और स्त्री की तरह दी जा रही है यहाँ


ये नियम किसी किताब में नहीं है लिखा


प्रत्येक जानता है जो है लाइन में खड़ा





मंशा




बड़ा अजीब प्राणी हूँ मैं


उल्टा ही सोचता हूँ सदा


अक्सर लोग अक्खड़ कहते हैं


कड़वा ही जो बोलता हूँ मैं


अब मैं भी सीख गया हूँ


जब प्रसंसा के पांव भारी हों


समझो मंशा पैदा होने वाली है


होठों पे फैलने वाली मुस्कान


हथेली फैलने का पहला चरण है

प्रतिनिधि





आज कल बड़ी चर्चा है समिति गठन की


हर एक चाहता है उसका भी प्रतिनिधि हो


एक स्वर्ण हो, एक दलित हो, एक स्त्री हो


समाज का हर तबका हो, एक पुरुष भी


अब एक मांग और आई है अभी ताज़ी


समिति में अपराधियों का प्रतिनिधि भी हो


मैं पूछता हूँ ? क्या किसी समिति में भी


जनता का कोई प्रतिनिधि कभी होता है ?

लोग




अक्सर पढ़े लिखे लोग चिल्लाते हैं


कभी राजनीति पर, कभी धर्म पर


लिखते हैं बड़ी-बड़ी इबारतें काली


सफ़ेद पन्नो पर सच- झूठ रोज़ ही


चिल्लाते हैं बेहतर समाज के लिए


पर मेरा सत्य अनुभव कहता है


अनपढ़ लोग बेहतर हैं पढ़े लिखों से


वे सांप्रदायिक-राजनैतिक नहीं होते

Wednesday, 20 April 2011

भ्रूण हत्या -लोकपाल बिल की


अन्ना हजारे ने जो आम आदमी की इच्छाओं को एक अमली जामा पहनाने की मुहीम का बीज संसद की कोख में रखने की कोशिश की है वह भ्रूण खतरे में जाता दिखाई दे रहा है. सत्ता पक्ष अपना दो मुँहवाला रवैया साफ तौर पर दर्शा रहा है. एक ओर कांग्रेस अध्यक्षा इस लोकपाल बिल की वकालत में मौखिक रूप से साथ होने का वादा करती हैं तो दूसरी ओर उनकी ही पार्टी के लोग समिति के सदस्यों पर इलज़ाम लगते हैं. जबकि सभी इस बात को बखूबी जानते हैं, बिना सोनिया के कांग्रेस में पत्ता भी नहीं हिलता . एक अन्ना हजारे नाम के दरम्याने कद के वृद्ध ने पूरे देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ जागृति की सुनामी पैदा कर दी. ऐसी सुनामी जिसकी उम्मीद न तो स्वयं हजारे को थी और न ही केंद्र में सत्तारूढ़ भ्रष्ट राजनीतिक दलों को ही. सरकार अप्रत्याशित रूप से बहुत जल्दी झुक गयी और दे गयी अन्ना और उनके मित्रों को जीत की खुशफहमी. अन्ना और सरकार के बीच एक तरफ बातचीत चल रही थी तो दूसरी ओर सियासी शतरंज की बिसात भी बिछाई जा रही थी. चूंकि दूसरा पक्ष सियासतदान थे इसलिए सियासत तो होनी ही थी.हम सभी जानते हैं कि शतरंज के खेल में आरंभिक बढ़त का मतलब ही जीत नहीं हो जाता वरन अंत तक अपने राजा को बचाते हुए शत्रु पक्ष के राजा को घेरना और मारना पड़ता हैं. पिछले ५-७ दिनों में शांति भूषण एक अच्छे न्यायविद से एक भ्रष्ट चरित्र के व्यक्ति के रूप में सामने रखे जाने की मुहीम का शिकार हो रहे हैं . ये आम आदमी कितनी ही बार छला गया है. अन्ना हजारे को भी कांग्रेस का दलाल तक कहा गया है ताकि वे खिन्न होकर शायद इस सब से अलग हो जायें. स्वामी रामदेव को भी इस आन्दोलन से अलग करना सरकारी साजिश ही लगती है क्योंकि सर्कार जानती है की अगर ये दो शक्तियां एक रहीं तो वे इस आन्दोलन को नैतिकता ,योग और अध्यात्म के मार्ग से जनमानस तक पहुंचाते हुए संसद में पास करने में कामयाब हो जायेंगे. अन्नाहजारे को इस रूप में सत्ता का दलाल दर्शाया जा रहा है कि वह जनता के रोष को, सत्ता के प्रति कम कर रहे हैं. जबकि सी डी कांड और शांति भूषण पर लगातार वार इस बात की ओर भी साफ इशारा करते हैं कि सत्ता को अब इस बात से डर लग रहा है की जिस लोकपाल बिल के जिन्न को पिछले ४२ वर्ष से बंद कर रखा है वह बोतल से बाहर आ गया तो कितने ही लोग सलाखों के पीछे होंगे. सत्ता में आने के लिए किया जाने वाला निवेश अब शायद मुनाफे का फायदा न रह जाये इस भय से इस सट्टे को खेलने वाले इस हथियार को आसानी से खोना नहीं चाहते जिसे आम लोग राजनीती कहते हैं.



वैसे भी मेरा विचार है की अन्ना जी को दिल्ली में ये कदम उठाने से पहले देश में भ्रमण करना चाहिए था और आम लोगों में और जाग्रति को पैदा करना चाहिए था . अभी दिल्ली जैसे महानगर में हुए एक सर्वे से ज्ञात हुआ है केवल १३ प्रतिशत लोग ही इस जन लोकपाल विधेयक के विषय में जानकारी रखते हैं . यदि ८७ प्रतिशत लोग देश की राजधानी में अनभिज्ञ हैं तो देश के शेष भाग की दशा का अंदाज़ा लगाया ही जा सकता है. अमर सिंह जैसे लोग अब शांति भूषण पर वार कर रहे हैं और राम जेठमलानी को ड्राफ्टिंग कमिटी में साफ तौर पर रखे जाने की वकालत कर रहे हैं. शायद अमर सिंह साहब ये भूल रहे हैं की जेठमलानी साहब भी इस देश की नेता के हत्यारों का केस लड़ चुके हैं. वैसे भी उन्हें ख़बरों में बने रहने का शौक है, उन्होंने विनायक सेन का भी केस सुप्रीम कोर्ट में लड़ा है जिसे की सरकार दोषी मानती है. ऐसे में यदि उन्हें कमिटी का सदस्य बनाया गया तो क्या उनपर उँगलियाँ नहीं उठाई जाएँगी ? मित्रों,अन्नाजी ने अभी तक इन दोनों बाप-बेटों पर लग रहे आरोपों की सत्यता के या उनके संदिग्ध चरित्र के बारे में कुछ भी नहीं बोला है. बल्कि वे कह रहे हैं कि जिन लोगों ने जनलोकपाल बिल को तैयार किया है उन्हें तो समिति में रखना ही पड़ेगा, चाहे वे भ्रष्ट ही क्यों न हों. अन्ना जी मानें या नहीं मानें उनसे गलती तो हो ही चुकी है जो उन्होंने भ्रष्टाचार के शीश महलों पर उछालने के लिए पत्थर ऐसे हाथों में पकड़ा दिया जिनके खुद के ही घर शीशे के बने हुए थे. मैं जानता हूँ कि अन्ना जी ने ऐसा जानबूझकर नहीं किया होगा. वे सीधे-सादे व्यक्ति हैं और शायद उनकी राजनीतिक समझ कमजोर है. राजनीति जंतर मंतर पर बैठकर नहीं सीखी जा सकती बल्कि यह तो ऐसा खेल है जो दिमाग में और दिमाग से खेली जाती है. साथ ही यह वह शह है जिसके प्रभाव में आने से चाहे-अनचाहे कोई भी व्यक्ति नहीं बच सकता. मित्रों, इस लडाई को जो क्षति पहुंचनी थी वह पहुँच चुकी है. अब आगे और क्षति नहीं हो इसके लिए क्षतिपूर्ति में लग जाने का समय आ गया है. अन्ना को अविलम्ब शांतिभूषण, प्रशांत भूषण से इस्तीफा दिलवा उनकी जगह एक तो किरण बेदी को और दूसरे किसी ईमानदार व विद्वान न्यायविद को लेना चाहिए.



वैसे एक सुझाव ऐसा भी सुना दोस्तों से कि चलो भ्रष्ट लोगों को ही ईमानदार कोशिश करने दो, क्यूंकि चोर ही चोर को अच्छा समझता है और शायद मजबूत दरवाजों का इंतजाम हो सके कानून के रूप में. लेकिन कपिल सिब्बल साहब के बयान जो उन्होंने पहली ही मीटिंग के बाद दिए, सरकार कि मंशा को साफ दर्शाते हैं कि वह कितनी ईमानदार है ? हो सकता है कल को कोई और आदमी केजरीवाल पर भी उंगली उठा दे , क्योंकि कहने और बकने को तो यहाँ हर एक अपना अधिकार मानता है परन्तु कुछ करना पड़े तो सब मर्द मादा नज़र आते हैं. इसलिए जो नेता आम आदमी का भला चाहते हैं उनकी पहचान एक एक करके सामने आती जा रही है. लोगों को झूठा दिलाशा दिलाया जा रहा है कि सरकार उनका भला चाहती है. खैर सरकार एक बार झुक कर अपना उल्लू काफी हद तक सीधा कर चुकी है. अब धीरे धीरे करके इस मुहीम पर बार-बार वार करके इसकी धज्जियां उड़ाई जाएँगी. आम आदमी की आस्था फिर नंगी होगी , फिर रौंदी जाएगी. ये लोकपाल बिल सपना बनकर रह जायेगा. इस लिए इस सपने को अगर साकार करना है तो सबसे पहले आम आदमी के बीच इस अज्ञानता को दूर कर जानकारी के प्रतिशत को अनभिज्ञता के स्तर पर लाना होगा यानि ८७ प्रतिशत . युवा शक्ति ने इस देश को संवारना है इस लिए युवाओं को चाहिए की जहाँ भी कहीं संभव हो वे इस मुद्दे पर हर माध्यम से चर्चा कर आम आदमी को इसमें शामिल करें और सत्ता पर दबाब भी बनाएं, ताकि भ्रष्ट लोगों को सजा मिलने का डर पैदा हो. राजनीती को उद्योग मान ने वाले लोगों को इस देश में मुहं काला कर के घुमाने की जरुरत है.



अभी भी अछे ईमानदार और न्यायप्रिय कानून जानकारों कि देश में कमी नहीं है हमें दुसरे विकल्प पर सोचना ही चाहिए. अन्नाजी एक बात और आप फिर आमरण अनसन के लिए तैयार रहिये क्योकि आपकी मौत से इन नेताओं को कोई फरक नहीं पड़ता, वे तो चाहते भी यही हैं. इस लिए अगर दोबारा अनसन जरुरी हो तो सौ बार सोचना क्योंकि इस देश को आपकी अभी ज्यादा जरुरत है. इस देश को एक नए आन्दोलन कि भी जरुरत है जो ये बताये और सिखाये कि आम आदमी के कर्त्तव्य क्या हैं ....हक तो हर एक मांगता ही है.

आम आदमी का सपना है ये जन लोकपाल विधेयक पर ये ख़ुशी का प्रसव कब होगा राम ही जाने.















Friday, 15 April 2011

तेरी आँखें




अज़ब शातिर शिकारी सी, कातिल हैं तेरी आँखें


मिलते ही हमारी धड़कने, बढाती हैं तेरी आँखें






न कोई जोर शक्लों का, गज़ब चुम्बक तेरी आँखें


ये दिल को खींच लेती हैं, बड़ी प्यारी तेरी आँखें






कभी चुपचाप रहती हैं, कभी वाचाल तेरी आँखें


हजारों ख्वाव देती हैं , बड़ी रंगीन हैं तेरी आँखें






मुझे सोने नहीं देती, नींदें चुराती हैं तेरी आँखें


बड़ी खामोश लगती हैं, गज़ब चंचल तेरी आँखें






मुहब्बत करने वालों को "कादर" नियामत हैं आँखें


जो तुम कह भी नहीं पाते, सब बताती हैं तेरी आँखें






केदारनाथ"कादर"


kedarrcftkj.blogspot .com