कविता सोच का विषय है
या ज्योमिती का
अभी तय करना बाकी है
जीवन में शिव और शक्ति के
दो त्रिकोण हैं .
जिनके बीच एक माँ है
प्रकृति शक्ति है और प्राण शिव हैं
मगर शवों का नर्तन जारी है
मैं उस रस्ते को चुनता हूँ
जहां क़दमों के निशां नहीं हैं
अक्सर चोट खाता हूँ सीखता हूँ
लहू भी है और औषधि भी
मुझे विश्वास है एक दिन
नफरत की दुनियाँ में भी
प्यार का सूरज उगेगा ..क्योंकि
ज्योमिती में वृत भी होता है
लौटना ही होता है सच पर
क्योंकि हम सच से ही पैदा होते हैं
शरीर का वाहन लेकर घूमने को
और अंत में उतरना भी है
रास्ते साथ नहीं रखे जा सकते
और मंजिल पर पहुंचकर
ये वाहन भी छोडना ही है
बस यही है जीवन की कविता
शब्द मसीहा
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