उड़ान ====
बिखरे बाल और बदहवास बेटी को देखकर माँ के होश उड़ गये . सौ-सौ सवाल मन में बिजली से कौंध गये .क्या हुआ ? बेटी !
लड़की लंबी लंबी साँसे ले रही थी मानों किसी बहशी जानवरों के जंगल से अपनी जान बचाकर आई हो . माँ ने उसे सीने से लगाया . तब कहीं हिचकियाँ बंद हुई उसकी .
जो बेटी ने बताया उस को सुन माँ माथा पकड बैठने को मजबूर हो गई . किसी तरह खुद को सम्हाला और बेटी को नहलाया .
सुबह तक बेटी किसी पंख नोचे पंछी सी हो गई थी , सारी रात माँ उसके पास बैठी रही न बेटी को नींद आई और न माँ को .
दोनों थाने पहुंची और अपनी रपट लिखवाने की बात करने लगीं . पर जब पता चला कि पुलिस के ही लोगों ने दुष्कर्म किया है तो तेंवर ही बदल गये दरोगा के . वह तम्बाकू मसलते और अजीब सी निगाहों से देखते हुए बोला - किसी दिन तो ये होना ही था , कल ही हो गया तो क्या हुआ .
बेटी खुद को होठों में दबी तम्बाकू सी ..दांतों का बोझ अपने जिस्म पर महसूस कर रही थी . उसने सोच लिया था अब एक नई उड़ान पर जाने के लिए . दुपट्टा कमर में बाँधा और पूरी ताकत से दरोगा के मुँह पर थूक दिया .
कल से तुम अपने सिपाहियों को यहाँ बंद रखना अब वे ही आयेंगे अपनी रपट लिखवाने .
यह कहते हुए माँ का कंधा पकड़ घर की ओर चल पड़ी अपनी नई उड़ान के मंसूबे मन में संजोये दरिंदों से बदला लेने के ..
शब्द मसीहा
No comments:
Post a Comment