Total Pageviews

18,363

Friday, 18 September 2015

जब नींद लगी तो मैं जागा

जब नींद लगी तो मैं जागा             

अपने को देखा अपने आप 

शायद वो कोई सपना था 

लेकिन बहुत ही अपना था 

न डर था झूठ सांच का ही 

न डाह की किसी आंच का ही 

बंद आँखों से जो जो देखा
कहीं सोया मेरे ही मन में था
तब उठकर बहुत मन रोया
मैंने जगकर बहुत कुछ खोया
जो दीखता है कहाँ होता है
यहाँ झूठ सांच सब धोखा है
सच कहता हूँ मैं यह तुमसे
अब मैं सो जाना चाहता हूँ
उन निर्बंध विचरती राहों पर
मैं सच में खो जाना चाहता हूँ
ये जीवन भी कोई जीवन है
उस जीवन सा हो जाना चाहता हूँ
शब्द मसीहा

No comments:

Post a Comment