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Tuesday, 7 February 2012



आदमी हूँ मैं


कभी लगता है खुद से अजनबी हूँ मैं
भीड़ में कोई बिछड़ा सा आदमी हूँ मैं

बहुत लोग दिखते हैं फरिश्तों की तरह
अजीब रोग है मुझको आदमी हूँ मैं

उम्मीद से रिश्ता है हारे हुओं का एक
है हाथ में तलवार वो आदमी हूँ मैं

लिखते और भी हैं धुंआ-धुंआ सा लोग
दिल में चिराग रौशन वो आदमी हूँ मैं

बम्ब हूँ जिसे जला सकते नहीं "कादर"
सोतों को जगाये जो वो आदमी हूँ मैं

केदारनाथ "कादर"







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