हमें नाराज़ भी होने का अब हक नहीं यारो
बेचा है जैसे खुद को इन्हें वोट देकर यारो
बिकती है प्याज, पेट्रोल, बियर एक दाम पर
पानी भी बिक रहा है दूध के दाम पर यारो
झंडा जलाना मंजूर है मगर उसे फहराना नहीं
कैसे अज़ब हालात से देश गुजर रहा मेरा यारो
खून अब खून कहाँ है जो गर है गैरों का
आज इंसान जानवर सा मर रहा है यारो
बस मुफलिसी ही हमारी किस्मत में क्यों है
"कादर" ये सवाल ओहदों पे बैठों पूछ लो यारो
केदारनाथ "कादर"
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