पुनरावृत्ति नहीं समय की
मन बैल सम मत घूम
आजा भर ले आज तू
अपने मिलन की माँग
उठ जाग, ले गागर चल
छाए आँगन प्रीत घन
गाए पवन, महके सुमन
कहता है मन, अभी चल
हर ले अपनी हर दहन
पुनरावृत्ति नहीं समय की
मन बैल सम मत घूम
प्रिय खड़े मन द्वार पर
लेकर सुगढ़ कर माल
शीश क़दमों में झुकाकर
जीत ले मन प्राण
हो जा मूर्ख मन सरल
बह संग प्रिय अविरल
भर माँग माथे की
धर ध्यान की ज्योति
कर ले जीवन सफल
पुनरावृत्ति नहीं समय की
मन बैल सम मत घूम
केदार नाथ "कादर"
waah
ReplyDeletebahut dhanywaad