Total Pageviews

18,911

Friday, 10 February 2012

पुनरावृत्ति नहीं समय की



पुनरावृत्ति नहीं समय की

मन बैल सम मत घूम
आजा भर ले आज तू
अपने मिलन की माँग
उठ जाग, ले गागर चल
छाए आँगन प्रीत घन
गाए पवन, महके सुमन
कहता है मन, अभी चल
हर ले अपनी हर दहन
              पुनरावृत्ति नहीं समय की
              मन बैल सम मत घूम

प्रिय खड़े मन द्वार पर
लेकर सुगढ़ कर माल
शीश क़दमों में झुकाकर
जीत ले मन प्राण
हो जा मूर्ख मन सरल
बह संग प्रिय अविरल
भर माँग माथे की
धर ध्यान की ज्योति
कर ले जीवन सफल


                पुनरावृत्ति नहीं समय की
                मन बैल सम मत घूम

केदार नाथ "कादर"


1 comment: