धन्यवाद
क्यूँ चाहता हूँ तुम्हें ?
तुम ही हो मुझसे
ठुकराए हुए, लाँछित
अवांछित, आवारा या...सच्चे मित्र
कब त्यागते हो तुम ?
पूरी तरह किसी को
लौट ही आते हो तुम
आती साँस की तरह
प्रिय भी कहने लगा हूँ
तुम्हारी आमद से हीकुछ इंसान हुआ हूँ
हाँ, इसके लिए आज मैं
तुम्हें धन्यवाद देता हूँ मेरे इस मन में घर
अपना बनाने के लिए
केदारनाथ "कादर"
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