ओ ! कामिनी, मधुवर्षिणी
तू मधु बरसाती चल
तू यौवन छलकाती चल मुग्ध करती चल नयन को
चूम ले उड़कर गगन को
तू झंकृत करती स्वरों को
चपल पायल बजती चल
ओ ! कामिनी, मधुवर्षिणी
तू मधु बरसाती चल तू यौवन छलकाती चल
कर विकल पलपल चपल
तू चित को चुराती चल
धर दामिनी सी छवि चंचल
मेरा मन लुभाती चल
तू मधु बरसाती चल
तू यौवन छलकाती चल
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