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Friday, 29 July 2011


जागो




जागो ! जागो ! जागो !
जागो ! मेरे भाइयो जागो !


समय नहीं है सोने का
न चुपचाप यूँ रोने का
उठो ! दहाड़ के तुम
उठो ! चिंघाड़ के तुम
सिंहासन सोने वालों का
झकझोर कर हिला दो
जागो ! जागो ! जागो !
जागो ! मेरे भाइयो जागो !


लाठी से न डरना तुम
मौत से न डरना तुम
हो जाओ होशियार तुम
हो जाओ तैयार तुम
अत्याचारी व्यवस्था मिटा दो
चेतनासूर्य नया तुम उगा दो


उठो ! दहाड़ के तुम
उठो ! चिंघाड़ के तुम
सिंहासन सोने वालों का
झकझोर कर हिला दो


जागो ! जागो ! जागो !
जागो ! मेरे भाइयो जागो !

केदारनाथ "कादर"



 

हो जाओ होशियार !
हो जाओ तैयार !
मेरे देशवासियों , मेरे देशवासियों

ये काला अन्धकार
हमें नहीं स्वीकार
हे ! शासक कहलाने वालो
तुमको है कोटि धिक्कार

हो जाओ होशियार !
हो जाओ तैयार !
मेरे देशवासियों , मेरे देशवासियों

अब न भूखे मरेंगे हम
अब न जुल्म सहेंगे हम
अब न मूक रहेंगे हम
अपने लिए लड़ेंगे हम

अब शासन बदलेंगे हम
मिलकर मजदूर किसान
हम सब आम इंसान
हो जाओ होशियार !

हो जाओ तैयार !
मेरे देशवासियों , मेरे देशवासियों


केदारनाथ "कादर"

Thursday, 28 July 2011


अजब शहर

अजब शहर है मेरा चलते पत्थरों का
दिल है, दर्द है, मगर प्यार नहीं है

चलते हैं साथ साथ बनकर हमसफ़र
हाथों में हाथ है पर एतबार नहीं है

हर एक है तैयार ताने हुए पत्थर
भीड़ में क्या कोई गुनाहगार नहीं है


कौन सुनता है दिल की सदा कहिये
व्यापार है वादों का , पर प्यार नहीं है

हम छोड़ भी दें शहर, न होगा विराना
इसे "कादर" इंसान की दरकार नहीं है



केदारनाथ "कादर"
 






धन्यवाद

जानते हो दुःख ....
क्यूँ चाहता हूँ तुम्हें ?

तुम ही हो मुझसे

ठुकराए हुए, लाँछित
अवांछित, आवारा
या...सच्चे मित्र

कब त्यागते हो तुम ?
पूरी तरह किसी को
लौट ही आते हो तुम
आती साँस की तरह

अब तो मैं तम्हें -
प्रिय भी कहने लगा हूँ
तुम्हारी आमद से ही
कुछ इंसान हुआ हूँ

हाँ, इसके लिए आज मैं
तुम्हें धन्यवाद देता हूँ
मेरे इस मन में घर
अपना बनाने के लिए


केदारनाथ "कादर"




ओ ! कामिनी, मधुवर्षिणी

तू मधु बरसाती चल
तू यौवन छलकाती चल



मुग्ध करती चल नयन को
चूम ले उड़कर गगन को
तू झंकृत करती स्वरों को
चपल पायल बजती चल

ओ ! कामिनी, मधुवर्षिणी
तू मधु बरसाती चल
तू यौवन छलकाती चल


कर विकल पलपल चपल
तू चित को चुराती चल
धर दामिनी सी छवि चंचल
मेरा मन लुभाती चल

ओ ! कामिनी, मधुवर्षिणी
तू मधु बरसाती चल
तू यौवन छलकाती चल

केदार नाथ "कादर"

मौत

मौत






वो दौड़ा किया बदहवास


बचने को यहाँ- वहाँ


मौत महबूब दिखी उसको


वो गया जहाँ-वहाँ


नाहक वो परेशान हुआ

वह भटका कहाँ -कहाँ


डरता रहा "कादर" मौत से


वो जिन्दा रहा कहाँ



Kedarnath”kadar”


                                                    बुद्ध


मैं लड़ता हूँ एक युद्ध


जो है मेरे ही विरुद्ध


मैंने ही किये हैं अनचाहे


                               द्वार विचार सब रुद्ध






मन है बड़ा मचलता


मुझसे है बहुत क्रुद्ध


संयम की राह से ही


हम होंगे "कादर" बुद्ध

kedarnath"kadar"