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Sunday, 22 April 2012



तुम अर्धांगिनी हो मेरी
मुझे गर्व है तुम पर
मैंने देखा है अक्सर तुम्हें
देर रात तक खटते हुए
सूरज से पहले उठते हुए
ताकि जा सकें हम भी
अपने दफ्तर ,बच्चे स्कूल
और तुम अपने काम पर


मुझे अक्सर लगता है
ये जैसे जिंदगी मशीन है
और तुम मेरी ऊर्जा हो
तुम बिन जीवन निरर्थक
लम्बी यात्रा भर होता मेरा
तुम न जाने क्या क्या हो
मित्र, माँ, पत्नी,सलाहकार
सच में जीवन हो साकार


मैंने देखा है तुम्हारा रोना
और चुप रह जाना अक्सर
मुझे भी दुःख होता है जब
पूरा नहीं कर पाता मैं कोई
तुमसे किया अपना वादा
और तुम बस मुस्कुराती हो
मेरे जीवन की कमियों पर
मैं पूर्ण हो जाता हूँ तब
जब कहती हो "जाने दो"
और जुट जाती हो फिर
दुगुने प्यार से परिवार में
सींचने नई ख़ुशी की खेती
अपने अथक परिश्रम से तुम


हाँ, मैं न्याय नहीं कर पाता हूँ
तुम्हारे इस सम्पूर्ण समर्पण से
तुम्हारे उड़ेले अतुलनीय प्रेम से
तुम्हारे ससक्त अथक परिश्रम से
ये भी तुम्हारा प्रेम ही है न
जो चुरा लिया है मैंने तुमसे
पर आज सच कहता हूँ, प्रिये !
धन्य हो गया है जीवन मेरा
पाकर तुम्हें अपना जीवन साथी


केदारनाथ "कादर

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