मेरा ही राज़दार मुझको आज छोड़ गया
आज मेरा भी भरोसा कहूँ तो तोड़ गया
ख्वाव मैंने तो सजाये थे उम्र भर के लिए
दोस्त चलकर कदम चार मुझे छोड़ गया
बे-वजह हँसना मुनासिब नहीं होता हरदम
बात कहकर सिसकता मुझे वो छोड़ गया
बात कोई जो कही होती मना ही लेता मैं
दिल का सरताज चुपचाप मुझे छोड़ गया
मेरे ख्वाबों में रहा कोई किराया न दिया
मैंने जिस घर में रखा वही घर तोड़ गया
मैं भटकता रहूँ लफ़्ज़ों के घने जंगल में
"कादर" ख्याल मुझको अकेला छोड़ गया
केदारनाथ "कादर"