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Monday 23 April 2012






मेरा ही  राज़दार  मुझको आज छोड़ गया
आज मेरा भी भरोसा   कहूँ तो तोड़ गया   


ख्वाव मैंने तो सजाये थे उम्र भर के लिए 
दोस्त चलकर कदम चार मुझे छोड़ गया


बे-वजह हँसना मुनासिब नहीं होता हरदम
बात कहकर सिसकता मुझे वो छोड़ गया 


बात कोई जो कही होती मना ही लेता मैं
दिल का सरताज चुपचाप मुझे छोड़ गया


मेरे ख्वाबों में रहा कोई किराया न दिया
मैंने जिस घर में रखा वही घर तोड़ गया


मैं भटकता रहूँ लफ़्ज़ों के घने जंगल में
"कादर" ख्याल मुझको अकेला छोड़ गया


केदारनाथ "कादर"
 

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