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Thursday 28 July 2011




ओ ! कामिनी, मधुवर्षिणी

तू मधु बरसाती चल
तू यौवन छलकाती चल



मुग्ध करती चल नयन को
चूम ले उड़कर गगन को
तू झंकृत करती स्वरों को
चपल पायल बजती चल

ओ ! कामिनी, मधुवर्षिणी
तू मधु बरसाती चल
तू यौवन छलकाती चल


कर विकल पलपल चपल
तू चित को चुराती चल
धर दामिनी सी छवि चंचल
मेरा मन लुभाती चल

ओ ! कामिनी, मधुवर्षिणी
तू मधु बरसाती चल
तू यौवन छलकाती चल

केदार नाथ "कादर"

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